वह पुराना मकान | That best old house | मेरी एक सोच | Sahil Hasan

That best old house

आज एक शहर में कुछ पल बीताने का समय मिला। काफी देर तक सड़को पर यूँही चलता रहा। फिर एक पुराना सा मकान दिख गया। थोड़ा थक गया था, सोचा कुछ देर रूक कर आराम कर लेता हूँ। तभी एक पत्थर के बने हुए बेंच पर मेरी नज़र पड़ी। और फिर मेरे कदम उस मकान की तरफ उठ गए। जब बेंच पर बैठा तो कुछ अजीब से सोच ने मुझे आ घेरा। मैं चारों तरफ देखते हुए सोचने लगा की कभी ये घर भी नया होगा। कितने ही दिन और रात को प्लान करते हुए इसे बनाया होगा। घर में रहने वाले हर इन्सान को कोई ऐसी जगह मिली होगी जहाँ उसे अच्छा लगता होगा।

कितनी ही शामें और सुबहों के यह मकान गवाह बना होगा। कुछ अच्छी बातें हुयीं होगी तो कभी ख़राब समय भी आया होगा। मकान में रहने वाले लोगों के बीच में हुए झगड़ो और गुस्से में कही गयी बातें। कभी इस मकान को दुल्हन की तरह सजाया और संवारा गया होगा। कितने ही खुबसूरत कहानियां बनी होंगी। मकान गन्दा न हो इसलिए कई सारे नौकर भी रहे होंगें जो उस को साफ – सुथरा रखने की कोशिश करते होंगें। मकान का मालिक उसे नयी दुल्हन को जैसे प्यार करते हैं उस तरह से उसका ध्यान रखता होगा। पर आज यह मकान खुद में ही कही खो गयी है।

जैसे बीते हुए दिनों की कहानी कह रही हो पर अब वहां कौन है उसको सुनने वाला, लोग अपनी कहानियों से परेशां हैं। कौन समझेगा उसकी कहानी। मकड़ियों के जाले, जंगल की तरह बढ़े हुए घास और दुसरे पौधें। पेड़ों से गिरे हुए सूखे पत्ते।

और फिर मेरा ख्याल ज़िन्दगी के रिश्तों की तरफ चला गया। लोग नए रिश्ते बनातें है। कुछ दिनों तक उसको हर रोज़ उसे प्यार से सिचतें हैं। पर फिर वह रिश्ता उस मकान की तरह पुराना होने लगता है और हम धीरे – धीरे उसको प्यार से सीचना छोड़ देते हैं। फिर एक दिन पता चलता है की जैसे वह रिश्ता जो बहुत मजबूत था अब खोखला हो गया है। और फिर वह गिर भी जाता है। कभी – कभी तो उसके गिरने का एहसास ही नहीं होता है।

— Sahil Hasan

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