How are you life …?
How are you life …?
एक बार मेरी मुलाकात ज़िन्दगी से हुई। और मैंने पूछा, “ज़िन्दगी तुम कैसी हो?”
वह थोड़ा मुस्कुरायी, जब मुस्कुरायी तो ऐसा लगा जैसे चारों तरफ फूलों की बारिस हो रही हो।
वह उसी मुस्कुराते हुए अंदाज़ में बोली, “मेरे पास दोस्त हैं, खूबसूरती है, दुआ करने वाले लोग हैं, रुपया पैसा, इज्ज़त, शोहरत सब कुछ है। मैं बेहद हसीं तकदीर वाली हूँ। मैं बहुत खुश हूँ।”
मुझे यह सुनकर बहुत अच्छा लगा की ज़िन्दगी खुश है और बेहतरीन चीजें उसके पास हैं।
मैंने कहा, “यह बात मुझे अच्छी लगी की आप वैसी ज़िन्दगी जी रही हो जो आप चाहती थी। जिसमें आप खुश हो।”
वह मुझ पर ज्यादा ध्यान न देते हुए, सिर को हिलाती चली गयी। मैं कुछ देर वहां खड़ा रहा और फिर मैं भी अपने रास्ते चल पड़ा यह सोचते हुए की मुझे तो अभी बहुत दूर तक चलना है शायद।
कुछ सालों के बाद की बात है एक बार फिर मैं किसी बाज़ार से गुजर रहा था जब मेरी नज़र ज़िन्दगी पर पड़ी। मैं दूर से चिल्लाया, “अरे ज़िन्दगी जरा रुको तो।” पर इस बार ज़िन्दगी न मुस्कुरायी न खिलखिलायी बस चुपचाप मुझसे छिपना चाही। फिर भी मैंने उसे ढूँढ ही लिया और मैंने वह सवाल आज फिर पूछा, “ज़िन्दगी तुम कैसी हो?”
वह अपने होठों पर चुप्पी बनाये रखी तब मैंने एक बार फिर पूछा,
ऐ ज़िन्दगी तू मुस्कुराती क्यों नहीं
क्यों है तेरे लब ख़ामोश और आँखें बोलती नहीं।।
उसने धीरे से अपने चेहरे को छिपा लिया और रो पड़ी। मैं उसको चुप कराना चाहता था पर ऐसा नहीं कर सका। कुछ देर तक यूहीं ख़ामोशी में गुजर गया फिर वह रोते – रोते बोली, “मेरे पास न दोस्त हैं, न खूबसूरती है, न दुआ करने वाले लोग हैं, न रुपया पैसा हैं, न शोहरत है, सब कुछ लूट गया। मेरे तकदीर ने मेरा साथ छोड़ दिया और अब मैं बिलकुल अकेली हूँ।”
मैं उसे समझाना चाहता था पर समझा नहीं सका की यह जो ज़िन्दगी है उसमें कुछ पल सुख के हैं तो कुछ पल का दुःख है फर्क सिर्फ इतना है की जो रोते हुए मुस्कुराना सीख लिया उसने ज़िन्दगी को जी लिया।
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