Ek Haseen Dhokha
आज जब मैंने उस तस्वीर को देखा जो मेरे पति की थी तो फिर से मैं सोचों कि उस भंवर में डूब गई जहां से मेरा निकलना मुश्किल हो जाता है। फिर मैं अपनी बुआ जो मेरे घर की बुआ तो नहीं कहूंगी क्योंकि अगर देखा जाए तो जब से मैं अकेली हुई हूं बुआ मेरी हमदर्द बनी, उसने देखा है मैंने कैसे सब कुछ सहा है हर ज्यादती को, और वो कहती हैं कि तुम्हारा बहुत बड़ा दिल है वरना कौन आजकल इतनी बड़ी बात को जाने देता है। कैसे तुम अपने शौहर को मुआफ कर सकती हो। मैं भी हंस के बुआ के पास बैठ जाती हूं। और कहती हूं कि जाने दे ना बुआ, सब को इसी दुनिया में थोड़ी ही ना रहना है। यहां से जाना भी तो है। सभी अपना ही अमाल लेके जायेंगें। और बुआ कहती है कि तुम्हारी इसी सोच का लोग फ़ायदा उठाते हैं। फिर मैं और बुआ हमेशा इन्हीं बातों में उलझ जाते हैं। ये है मेरी जुबैदा बुआ ..
मैं चिल्लाने लगी, “बुआ ये तसवीर यहाँ कौन रखा?”
बुआ थोडा सहम गयी और कहने लगी, “पता नहीं सफाई करते वक्त मैं दराज में रखना भूल गई शायद लायें मैं रख देती हूं।”
मैंने कहा, “अब रखने से क्या फ़ायदा जब इस तसवीर को देख कर मेरे सारे दर्द ही जाग गए।”
और बुआ का फिर से वही डायलॉग की वजह यह है
हूं कुछ करो अब आप हर बार मुझे ना बताएं क्या करना है ना करना है और बुआ जानती थी कि मैं गुस्से में हूं बाद में ठीक हो जाएगी और फिर आ के कहेगी बुआ आपको बुरा तो नहीं लगा।
मेरी बात इस तरह से बुआ समझ गई और कहने लगी, “लाओ मैं तुम्हारे सर में तेल लगा दूं। तुम सो जाओ।”
और बुआ मेरे सर में तेल लगाते हुए कुछ इधर उधर की बातें की ताकि मेरा ध्यान बट जाये।
थोड़ी देर बाद मुझे नींद आ गई। और फिर सोते – सोते अचानक से मेरी आंख खुल गई। मुझे वो हर बात याद आने लगी जब मेरे जिंदगी के बहुत अच्छे पल गुजर रहे थे। ऐसी जिंदगी जिसमें मैं मगन थी। क्या नहीं था मेरे पास खूबसूरती, पैसा, अच्छा शौहर सब कुछ। मेरे शौहर मुझ से बहुत प्यार करते थे। उन्हें मैं बहुत पसंद थी। उनको खूबसूरत लड़की चाहिए थी जो कि उन्हें मिल गई। वो कोलकाता जैसे मेट्रो शहर में रहते थे और मैं बिहार से आई थी तो उन्हें लगा कि शायद वहां की लड़की फैशनेबल नहीं हो पायेगी। टाइम लगेगा मुझे ये सब सीखने में, लेकिन उन्हें पता नहीं था की थी तो मैं भले ही एक छोटे शहर से, लेकिन मैं बहुत स्टाइलिश थी।
मेरी सहेलियां कहती थी, “तुम किसी हीरोइन से कम नहीं हो।” और वो मेरी ईयरिंग्स, कपडे, सैंडल सब देखती रह जाती थीं।
वो दिन संडे का था जब मेरी शादी का पहला महीना ही गुजर रहा था। मेरे शौहर छुट्टी में शाम को
उन्होंने कहा, “चलो कहीं घुमने चलते हैं।”
मैंने पूछा, “कहाँ जाना है?”
उन्हें कहा, “चलो तो सही। तैयार हो जाओ।”
और मैं चली गई तैयार होने। मैं ब्लैक कलर का एक सूट निकली जो कि मेरा पसंदीदा था। मैं उस सूट को पहनी और जब पहन कर अपने शौहर के सामने आई तो वो मुझे देखते रह गए।
और फिर वो कहने लगे, “वाह तुम तो बहुत खूबसूरत लग रही हो।”
मैंने कहा, “चलें अब?” फिर हम लोग एक शॉपिंग मॉल गए। उन्होंने कहा, “कुछ चाहिए तुम्हें?”
मैंने कहा, “नहीं।” जब मैं शादी कर के आई थी, मुझे अपने शौहर से पैसे लेने में बहुत खराब लगता था। वो बार-बार कहते थे कि कुछ तो ले लो मैं इंकार कर देती थी फिर उस दिन वो मॉल में जिद कर बैठे। कहने लगे, “तुम्हें आज लेना ही होगा।” फिर वो मेरे लिए सूट, सैंडल और भी बहुत सारी चीजें ख़रीदे। फिर हमलोग एक रेस्टोरेंट में डिनर किये और घर आ गए।
मैं उनके लिए चाय बना के लाई और अपने ईयरिंग्स को उतार रही थी जब वो कह रहे थे, “आज मैंने देखा, तुम्हारे जैसी वहां पे कोई भी लड़की नहीं थी।” मैंने हंस के कहा, “आप क्या समझते हैं? मैं अपने शहर की हीरोइन हूं।”
फिर मैं उन्हें अपना शादी से पहले का कोई किस्सा सुनाती। लेकिन उनके पास कभी वक्त नहीं होता था। लेकिन फिर भी मैं सुनाती रहती थी। इस तरह हमलोग की जिंदगी अच्छी गुजर रही थी। शादी के कुछ साल गुजरते चले गए। लेकिन मुझे बच्चा नहीं हो रहा था।
एक दिन हम लोग डॉक्टर से दिखाये। कई सारे टेस्ट हुए, जब डॉक्टर ने साफ कहा दिया कि मुझे कुछ समस्या है। आपको कभी बच्चा नहीं होगा। फिर तो ये बात सुन के मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई हो। लेकिन मेरे पति मुझे बहुत समझाए। बोले कोई बात नहीं, ऐसा होता है। ऐसे कई लोग हैं दुनिया में। फिर भी थोड़ा इत्मीनान हो जाता था कि चलो मेरे पति को कोई प्रॉब्लम नहीं है।
लेकिन फिर भी मैं अक्सर उनसे सवाल करती थी कि कहीं आप मुझे छोड़ तो नहीं देंगे, वो कहते थे, “कैसी बात करती हूं मैं तुम्हें क्यों छोड़ दूंगा।” और उनकी बातों से मुझे बहुत सुकून मिल जाता था। पता नहीं क्यों, जैसे ही कुछ दिन गुजरता मैं यही सवाल दोहराने लगती है और हमेशा की तरह वो मुझे समझा देते थे फिर जब मैं उनकी बातों से पूरी तरह पुरसुकुन हो गई तो मुझे एक कॉल आया।
मुझे नहीं पता था कि ये मेरी जिंदगी के आने वाले तुफानो में से है। वो कॉल मेरी बेस्टफ्रेंड का था जिसके लिए मेरी दोस्त, बहन उसका हर कुछ मैं ही थी। उसकी कोई बहन नहीं थी और ना कोई भाई जिसकी वजह से वो ज्यादा वक्त मेरे साथ ही बिताती थी। उसका घर मेरे घर के बगल में ही था। हालांकी जब भी वो मेरे घर आती थी अपनी अम्मी से बहुत डांट सुनती थी। क्यों कि वो अपने घर से ज्यादा मेरे घर में रहती थी। कहती थी कि तुमसे दिल ही नहीं भरता है मैं भी उसे बहुत पसंद करती थी। प्यार किया करती थी। बिना खाना खाए मैं उसे जाने नहीं देती। कहती थी कि शायद मेरी कोई बड़ी बहन होती तो तुम्हारे ही जैसी होती। हमलोग 10वीं क्लास तक एक साथ पढ़े फिर वो बाहर चली गई पढ़ने। लेकिन फिर भी हमलोग में दूरी कम नहीं हुआ जब भी छुट्टी में आती, मुझसे मिले बिना नहीं रहती, इस तरह हमलोग में बहुत गहरी दोस्ती थी।
मेरी शादी में वो नहीं आ सकी थी। सादिया था मेरी बेस्टफ्रेंड का नाम और आज अचानक से सादिया का कॉल आया तो मैं बहुत खुश हो गई उसने कहा की तुम तो शादी कर के भूल गई। मैं बहुत मिस करती थी तुम्हें। तो मैंने तुम्हारी अम्मी से नंबर मांगी।
फिर हमलोग हमेशा की तरह बातें करने लगे। जब वो कहने लगी मेरी छुट्टी हो रही है। मेरा कोर्स अब पूरा हो गया। परीक्षा दे के मैं फ्री हूं। मैंने कहा ये तो बहुत अच्छी बात है। ऐसा करो छुट्टी में तुम मेरे यहां आ जाओ। पर मुझे उसकी अम्मी याद आ गई मैंने कहा की मगर अम्मी आने देंगी तब। वो रोने लगी और बोली कि अम्मी अब नहीं रही। और अम्मी के गम में पापा भी बीमार रहने लगे, मैं उनकी देखभाल के लिए उनके साथ रह रही थी लेकिन अचानक एक दिन उन्हें हार्ट अटैक आ गया और वो बच ना सके। मुझे सुन कर बड़ा अफ़सोस हुआ।
फिर मैंने कहा तब तो तुम और अकेले हो गई। फिर तो तुम जरूर आओ मेरे यहां। बचपन में भी उसके अकेले की वजह से मैं उसे ज्यादा प्यार करती थी, और अब तो वो बिल्कुल ही अकेली है, तब तो मुझे उस पे और प्यार आया। और मैंने सोचा कि वो हमेशा कहती थी ना कि तुम मेरी बड़ी बहन जैसी हो तो अब मैं बनूंगी भी उसकी बड़ी बहन।
मैंने पूछा, “तब सादिया कब आ रही हो मेरे पास?” वो कहने लगी, “तुम्हारे घर मैं कैसे रहूंगी?” मैंने कहा, “भूल गई, बचपन में तो अपने घर में रहना नहीं चाहती थी और कहती थी कि काश हमलोग सच में बहन होते और एक ही साथ हमेशा तुम्हारे ही घर में रहती।”
सादिया हंसने लगी फिर बोली, “मुझे आने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन तुम्हारे पति को ऐतराज़ नहीं होगा।”
मैंने कहा, “मैं मना लूंगी बस तुम आने की तैयारी करो।”
रात को जब मेरे पति आए। बोले, “क्या बात है, आज काफी दिनों बाद बहुत खुश नजर आ रही हो।”
मैंने कहा, “बात ही कुछ ऐसी है। वो हैरान हो के पूछे, “क्या बात है?”
फिर मैंने कहा कि मेरी बेस्टफ्रेंड का कॉल था और वो सारी बातें बताई जो मेरे और सादिया के बीच हुई थी। फिर उसके आने का भी। आने वाली बात सुन कर मेरे पति थोडा हैरान हुए और कहने लगे, “वो आएगी तो मुझे प्रॉब्लम होगी। तुम्हें पता है, मैं किसी और लड़की से शर्माता हूं।”
फिर मैंने समझाया, “मेरा बच्चा नहीं है, और आपके पास टाइम नहीं होता है। मैं बहुत अकेला महसूस करती हूं। ऐसे में अगर वो आ जाती है तो मेरा बहुत दिल बहल जाएगा। उन्होनें कहा, “जैसी तुम्हारी मर्जी।”
शनिवार का दिन था जब शाम में वो आने वाली थी। मुझे नहीं पता था कि मैं किसी तूफान को खुद ही दस्तक दे रही हूं। शाम को 6 बजे मेरे घर में सादिया आ गई। मिल के हमलोग इतना खुश थे कि वक्त का कुछ पता ही नहीं चला। 9 बजे चुका था मैंने कहा, “मेरे पति के आने का टाइम हो गया।”
सादिया बोली, “तुम्हारे पति आएंगे तो मुझे बड़ा अजीब लगेगा।”
मैं बोली, “वो भी यही बात कह रहे थे।” मैं सादिया से बोली, “घबराओ नहीं मैं तुम दोनों की दोस्ती करवा दूंगी। फिर तुम दोनों को अजीब नहीं लगेगा। और हमलोग तीनों फ्रेंड की तरह रहेंगे।”
मैंने उसे याद दिलाया, “याद है जब बचपन में तुम मेरे घर आती थी। मेरे चचेरे भाई – बहन और घर में जाने कितने लोग थे, दादी, अंकल, आंटी, सब से तुम कितना घबराती थी। सबसे ज्यादा मेरे चचेरे भाई के साथ तुम खेलना नहीं चाहती थी लेकिन मैं जबरदस्ती तुम्हें खींच कर ले आती थी। फिर तुम सबको पहचानने लगी और धीरे – धीरे तुम मेरे परिवार का हिस्सा बन गई।”
सादिया ने कहा, “ये सब तो तुम्हारा कमाल था। सबके दिलों में मेरे लिए मुहब्बत तुम्हीं तो जगाई, मैं तो अकेली रहती थी। ऐसे रिश्ते का तो मुझे पता ही नहीं था जो मैंने तुम्हारे घर में देखा। खास कर तुम्हारी दादी, मैं कितनी डरती थी उनसे। तुम जबरदस्ती बैठती थी और अपनी दादी को बताती थी कि सादिया आई है। और तुम मेरे और अपने स्कूल की कहानी दादी को बताती थी कि आज ये हुआ था, वो हुआ था और दादी हंसने लगती थी। तुम्हें कहती थी कि तुम्हारा काम ही क्या है सिर्फ खेलकूद हंसी मजाक और तुम दादी को कहती थी कि सादिया तुम अलग क्यों बैठती हो। ये नहीं कि उनके साथ हंसी मजाक करें, आनंद लें, दादी कहती थी इस लड़की को जरा सी भी शर्म नहीं आती है।”
और फिर सादिया हंसने लगी और कहने लगी, “तुम्हारी और दादी का रिश्ता देख के मुझे बहुत ही अच्छा लगता था लेकिन तुमने मुझे भी अपने और दादी के रिश्ते में बांध लिया। फिर याद है वो तुम्हारे अरशद भैया जब एक बार तुम्हारी छोटी बहन रिदा को ढूँढ रहे थे तुमने कहा कि पीछे की बालकनी में है और मैं तुम्हारे बालकनी की रेलिंग पर चेहरा धो रही थी। तुमने मुझे जग में पानी दिया और बोली की यहाँ पे चेहरा धो लो। मैंने कहा यहाँ पे? तुमने कहा कि हाँ मैं तो रोज़ यहीं पे धोती हूं। और तुमने रेडियो पे गाने लगा दिए। वहीं बालकनी की खिड़की के पास तुमने कहा कि लो आनंद लेते हुए चेहरा धो लो सामने गार्डन भी है, थोडा फूलों पे भी नजर डाला करो वो भी बेचारें सोचते होगें कि सादिया हमें क्यों नहीं देखती है। और तुम्हारी बातों में से मुझे खूब हंसी आती थी। और पीछे से तुम्हारी अम्मी कहती थी कि उसका काम ही क्या है बस बाते बनाना। और उधर से दादी चिल्लाती थी कि कितनी तेज आवाज में गाना बजाती है। इसका रोज का यही काम है, स्कूल से आना, तेज आवाज में गाना बजाना और रोज कोई ना कोई दोस्त को ले आना।”
मैं पूछी तुम से, “दादी मेरे बारे में कह रही है? तो तुमने कहा नहीं रे, तुम दोस्त हो क्या? तुम तो मेरे घर का ही हिस्सा हो। और भी मेरी बहुत दोस्त है समझी। कल 6 दोस्त आई थी मेरी। हमलोग 6 दोस्तों का ग्रुप है। वही हमलोग खूब हंसी मजाक कर रहे थे, ज्यादा मेरी कहानियां और सबलोग सुन सुन के हंस रही थी। और उनलोग को भी मेरे घर में खूब अच्छा लगा अब तो अक्सर ही आ रही है वो लोग। उसके लिए दादी बोल रही है।”
सादिया बोली, “कितनी दोस्त है तुम्हारी? मैं तो सोचती थी कि सिर्फ मैं ही तुम्हारी दोस्त हूं। और तुमने कहा कि चल तू कोई दोस्त है क्या? तुझे तो मैं घर की ही समझती हूं। मेरी दोस्त की लिस्ट जानोगी तो दिन गुजर जाएंगे। अब तो तुम चली गाई अलीगढ़ पढ़ने। मेरे कितने दोस्त और कितनी कहानियां नहीं जान रही हो, उतना समय भी नहीं है तुम्हें बताने का। तुम्हें घर भी जाना है। याद है बैंक का बहाना करके मेरे घर आई हो। अब तो घर भी दूर हो गया तुम्हारा। जल्दी आ जावो, आओ मैं खाना लगवा रही हूं और कह रही हूं कि तुम चली गई। और तुमने किया किया जो तुम्हारे अरशद भैया जो कि रिदा को खोज रहे थे तुमने कहा कि पीछे चेहरा ढो रही है। वो आए और पीछे से मेरे सर पे हल्के हाथों से डरते हुए कहा कि क्यों री तुम यहां हो मैं कब से ढूंढ रहा था। और जब मैं मुड़ी वो बेचारा कितना घबरा गए और मैं भी शर्मा गई। और तुम पीछे से ही कुछ कर रही थी।
तुम खूब हंसी तब वो बोले कि मैं तो रिदा को ढूंढ रहा था। तुमने कहा कि तो क्या हुआ इतना घबरा क्यों गए ये भी तो रिदा ही जैसी है। सादिया है ये आप बचपन में खेले हुए हैं इसके साथ। लेकिन आपलोग को शरमाने से फुर्सत मिले तब तो पहचानें एक दूसरे को। और तुम्हारी बात सुनकर के तुम्हारे भैया भी खूब हंसने लगे और मुझे भी हंसी आ गई। भैया बोले कि पता नहीं तुम कब सुधरोगे और भैया तुम्हारे बोल के चले गए खैर रिदा तो मिली नहीं तुम दादा को वजू के लिए पानी दे देना मैं कहीं जा रहा हूं। तुम बोली कि कहीं का नाम नहीं है क्या, कल ही आपके सामने वाले सिनेमा से निकलते हुए देखे थे। शुक्र करे मैंने किसी को बताया नहीं, और आज रूही से मिलने तो नहीं जा रहे हैं। और वो तुम्हारे हाथों की उंगली पाकर जोर से घुमा दिए। और बोले बहुत बोलती हो। उधार से तुम्हारी अम्मी आई, और कहने लगी की अरे तोड़ दोगे क्या इसका हाथ। शादी ब्याह कैसे होगा। ये बात सुन के तुम्हारे घर के सभी लोग जमा हो गए थे वहां पे और सभी लोग हंसने लगे।
और फिर तुम्हारी दादी कहने लगी कि इसी से तो मेरे घर का रौनक है। इसलिए तो मुझे तुम्हारे साथ बहुत मन लगता था कोई ऐसा पल नहीं होता था जिसमें तुम्हारे साथ कोई आनंद ले सके ना। फिर जब मैं घर जा रही थी तब तुम बोली कि रुको, मैं भी चलती हूं मुझे सागर की दुकान में जाना है चलते है साथ। तुम वहां से अपने घर चली जाना और तुमने अपनी बहन रिदा से भी कहा साथ चलना।
फिर हमलोग जब मार्केट गए रास्ते में तुम कितना हंसाई। एक लड़का तुम्हें जो रोज देखता था, फिर से देख रहा था मैंने कहा कि तुम्हें कितना चाहिए है। तुम बोली उसका रोज का वही काम है, तुम उसपर उतना ध्यान मत दो। मुझे तो शादी पापा की मर्जी से करना पड़ेगा। मैं तो ये सब सोच भी नहीं सकती और मैं शादी के पहले दिन गाना गाऊंगी। ये तेरा मेरा मिलना, ये है पापा की मर्जी यूं ही नहीं है यार। वो सोचेगा कि बहुत मुहब्बत से शादी हुई है, लेकिन मैं भी बता दूंगी कि ये सिर्फ पापा की मर्जी थी यानी तुम अपने पति को भी नहीं छोड़ोगी मैंने कहा। तुम बोली पागल हो मजाक कर रही हूं। पूरी ही रात, मैं ऐसी बात बताऊंगी। फिर हमलोग खूब हंसने लागे।
फिर हमलोग एक दुकान में गए वहां एक आंटी तुम्हारी बहन को देखी थी। जब रिदा शॉप के उस कोने की तरफ गई थी तुम्हारे दुपट्टे की मैचिंग लगाने। फिर से रिदा आ के हमलोग को बताई की एक आंटी तो बार – बार मुझे ही देख रही थी शायद बहुत अच्छी लगी उनको। और तुमने रिदा से कहा कि जी नहीं वो ये देख रही थी कि ये वाकाई में गोरी है या पाउडर लगा के गोरी हुई है।
फिर रिदा ने कहा कि चले अभी मैंने भी उस लड़के को, जो आपको रोज देखता है। उसे ये बात बताऊंगी कि आपके रेशमी बालों का राज मेंहदी है, और चेहरे पर रोज सुबह दूध और नारंगी लगती है। लोग जितने फल खाते नहीं हैं, उतने तो ये चेहरे पे लगती है, नारंगी अंगूर। पता है सादिया आपी आज पेपर में पढेंगी और कल हो के स्याही चेहरे पर। फिर हमलोग खूब हंसे, कितना मजा आया हमलोगों को मार्केट में ना।”
मैंने कहा कि अभी भी तो वही हाल है टाइम देखो 9 से 10 बज गए अब मेरे पति आ ही जाएंगे। उसने कहा, वाकई आज भी वही हाल है, तुम्हारे साथ वक्त बीत जाएगा इंसान का, लेकिन वक्त का पता ना चले।
अब मेरा स्वभाव तो वही है, वो तो मैं नहीं बदलूंगी क्योंकि मेरी पहचान ही यहीं है कि मुझसे लोग खुश रहें चाहे मैं कितना भी दुखी क्यों नहीं रहूं। क्यों ऐसा क्या हुआ सादिया ने पूछा, मैं खुद से बहुत तन्हा हो गई सादिया मेरे अंदर बहुत बड़ी कमी आ गई। सादिया हैरान हो गई। ये क्या कह रही हो, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। मैंने कहा रात में इस बारे में बात करेंगें। आज मैं तुम्हारे साथ रहूंगी तो नहीं वरना मेरे पति नाराज हो जाएंगे लेकिन बहुत सारी बातें करेंगे। अभी तुम जाओ कमरे में आराम कर लो। कुछ देर में किचन में जाती हूं जब मेरे पति आ जाएंगे तो खाना निकालेंगे।
जिंदगी को मैं जितना आसानी से जीना चाहती थी, उतना आसान जिंदगी नहीं होता। मुझे पता ही नहीं था की ज़िन्दगी इतना मुश्किल होगी। मैं बस मुहब्बत ही मुहब्बत जानती थी और लोगो को सिर्फ ख़ुशी देना। मेरे अंदर सबसे बड़ी कमी थी कि मुझे चालाकी नहीं आती थी। और जिस रास्ते को मैं फूलों से सजना चाहती थी, मुझे नहीं पता था कि मैं अपने ही रास्ते में कांटे बिछा रही हूं।
मैंने सादिया को अपना दुपट्टा ओढ़ने के लिए दे दिया था। उसका दुपट्टा आरामदायक नहीं था। उसने कहा, “मेरे सारे कपडे – दुपट्टे ऐसे ही हैं। अब तुम शॉपिंग करवा देना मुझे।” मैंने कहा, “पहले भी तो साड़ी की शॉपिंग तुम मेरे ही साथ करती थी।”
उसने कहा, “हां, इसलिए मैं कहती हूं कि तुमने क्या कुछ नहीं दिया मुझे। अपने घर में जगह, मुहब्बत और शॉपिंग, फैशन स्टाइल जैसा – जैसा तुम करती थी मुझे भी सिखाती थी।”
अच्छा ठीक है, अब भी मैं वही हूं घबराओ नहीं। फ़िलहाल तो मेरा सूट पहन लो, बाद में मैं तुम्हें शॉपिंग करवा दूंगी। उसने कहा कि सिर्फ दुपट्टा ही दी काफी है। मैंने कहा, मेरे सामने फिर से पहले की तरह अजीबगरीब हालत बनने की जरूरत नहीं है। दुपट्टा कोई और सूट कोई और मैं तो एक मिनट भी ऐसे हुलिये में ना रहूँ। चलो जाओ पहन लो और सादिया सूट ले के चली गई। फिर थोड़ी देर में आई और मुझ से पूछने लगी मैं कैसी लग रही हूं? मैंने कहा मेरा सूट पहन लो तो अच्छी ही लगोगी।
उसका मुंह बन गया, मैंने कहा, “अरे मैं मजाक कर रही हूं। तुम तो बहुत ही प्यारी हो, लेकिन तुम अपने ऊपर ध्यान नहीं देती हो। देखना मैं तुम्हें कितना निखार दूंगी। तुम्हारे बालों में मेहंदी लगा दूंगी, तुम्हारे बाल कितने सिल्की हो जाएंगे देखना। खैर अभी तुम जा के आराम कर लो थोड़ी देर। क्यों कि रात में हमलोग को जगना है। मैं भी जा रही हूं, फेसवॉश कर के मेकअप करना है। ये कह के मैं वॉशरूम में चली गई।
सादिया अपने कमरे में चली गई थी। थोड़ी देर के के लिए मेरे पति आए मेरे कमरे में। उनको मैंने नहीं बताई थी कि सादिया आज आने वाली थी। मैं सरप्राइज देना चाहती थी। मैं जब नहीं मिली वो दूसरे रूम में गए वहां सादिया सोई थी मेरा सूट पहन के। थोड़ी देर के लिए उन्हें लगा कि मैं ही हूं।
वो आवाज दिए, “माहिरा मेरी जान।” जैसा ही करीब गए सादिया चौंक के उठी और जब तक मैं भी उनकी आवाज से कमरे में पहुंच चुकी थी। दोनों शर्मा गए जैसे अरशद भाई और सादिया के साथ मैंने मजाक किया था। लेकिन इस बार खुद ही हो गया। और हमें वक्त कहा गया था अब भी खूब हंसी और उन दोनों की नजरें झुकी हुई थी मैंने देखा सादिया काफी प्यारी लग रही थी मेरे सूट में। सादिया नैन नक्स से अच्छी थी, बस मेरी तरह गोरी नहीं थी। लेकिन कशिश थी उसके चेहरे में। दोनों चुप थे।
मैंने कहा, “यही सादिया है मेरी दोस्त और अगर आपलोग को शरमाने से फुरसत मिल गई हो तो सलाम दुआ कर ले।” फिर इस तरह मैंने दोनों की हिचकिचाहट को दूर करने की कोशिश की। मेरे पति चले गए।
सादिया मुझसे बोली, “नाम बताओ ना। अभी तक तुमने नाम नहीं बताया।” मैंने कहा, “तुम्हें तो पता ही है नाम नहीं लेते। दादी बहुत गुस्सा किया करती थी। उनका आरिज अहमद नाम है। अब मैं जा रही हूं थोड़ा आरिज के पास से हो के आती हूं। मैं गाई तो आरिज़ खुद से अपना कपड़ा निकाल रहे थे। आज पहली बार, मैं भूल गई थी उनके लिए कपडे निकालना। मुझे देखते हुए कहा, “आज पहली बार हमलोग की जिंदगी में कुछ बदलाओ आया है, मैं आया तो तुम मेरे पास नहीं थी।”
मुझे लगा वो कपड़ा के बारे में कुछ मुझे कहेंगें। मैंने उन्हें कहा तो वो बोले नहीं कपड़े की बात नहीं है। तुम्हें नहीं देखा आज जब मैं घर में आया। मुझे आदत है, घर में आते ही पहले तुम्हें देखने की। तुम्हें तो पता ही है मेरी हर सुबह की शुरुआत तुम्हारे चेहरे से होती है और ऑफिस से आते ही सबसे पहले तुम्हें देखता हूं।
मैंने कहा, “क्या हुआ जिंदगी में थोड़ा बदलाव ही आ गया तो?” आरिज ने कहा, “मैं नहीं चाहता।”
मैंने कहा, “आप भी ना ऐसा लग रहा है मेरी दोस्त ना आई हो कोई तूफान आ गई। ये कह कर मैं चली गई।
मुझे नहीं पता था कि ये तूफ़ान ही था। और मैं ठहरे हुए साहिल को जबरदस्त तूफ़ान से मिलाने की कोशिश कर रही थी।
फिर मैंने खाना लगाया और सादिया को बुलाने चली गई। सादिया थोड़ी शर्मीली थी लेकिन बाहर में पढ़ाई करने की वजह खुले दिमाग से थी। लेकिन मैं जब आरिज को कहने गई उन्होंने इंकार कर दिया। मैंने कहा कि तब ठीक है आप खा ले मुझे तो सादिया के साथ खाना पड़ेगा। वो अकेले खाएगी कैसा लगेगा? उसे कितना अकेला महसूस होगा। तब आरिज ने कहा कि यानी आज मेरा खाना भी तुम्हारे बिना ही खाना होगा।
मैं बोली, “इस तरह आप करेंगे तो कैसे होगा? थोडा मिले जुले और वैसे भी सादिया एक दो दिन के लिए तो नहीं आई है। अभी रहेगी और जब आप नहीं होते हैं दिन में, मैं कितना तन्हा महसूस करती थी। आज शाम से सादिया के साथ ऐसा बीता, जैसा मेरी पहली वाली जिंदगी फिर से वापस आ गई हो। मेरा बच्चा न होने वाली बात आज तो जैसे मैं भूल ही गई।
आरिज बोले, “चलो इस बात से तो मुझे खुशी हुई। काश की मैं तुम्हारी इस कमी को पूरा कर पाता। यकीन मानो अगर मेरे बस में होता तो मैं अपना हर कुछ लूट देता तुम्हारे लिए।”
मैंने कहा, “फ़िलहाल जिसमें मैं खुश हूं, आप भी खुश रहे।” फिर वो मेरे साथ आए और फिर हम, सादिया और आरिज तीनो खाने के लिए बैठे। आरिज बात नहीं कर रहे थे सादिया से और मैं दोनों को घुलाने – मिलाने की कोशिश कर रही थी। मैं सोच रही थी कि कहीं सादिया ये ना सोचे की आरिज को कहीं नापसंद तो नहीं है उसका मेरे घर में आना।”
सादिया के अम्मी अब्बू अब नहीं हैं, इस बात का मुझे बहुत एहसास था। इस वजह से मुझे लग रहा था कि अब मेरी ज़िम्मेदारी है सादिया। खाना खा के आरिज अपने कमरे में चले गए। थोड़ी देर बाद मैं भी किचन से बाहर गयी और फिर आरिज के पास चली गई और दूध का गिलास देते हुए उनसे बोली, “मैं सादिया के पास जा रही हूं।”
उन्होंने कहा, “ठीक है जल्दी आना।” मैंने कहां कोशिश करूंगी।
जब सादिया के पास गई वो बोली, “आओ मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी। और कब से मैं सोच रही थी तुम्हारी ही बातों के बारे में जो तुम बतायी थी उस वक्त। ऐसी क्या बात है जिसकी वजह से तुम उदास रहती हो। तुम्हारे पति तो अच्छे हैं, प्यार करते हैं तुमसे फिर क्या बात है?
मैं बोली, “हाँ, ये सब तो है मेरे पास। लेकिन शादी के 3 साल हो गए और मुझे बच्चा नहीं हो रहा है।”
तो क्या हुआ क्यों घबराती हो, अभी 3 साल ही तो हुए हैं हो जाएगा। मैं बोली, “नहीं होगा बेबी मुझे। डॉक्टर ने कहा है, कोई समस्या है मुझे और मुझे कभी बच्चा नहीं होगा।” सादिया सुन के बहुत हैरान हो गई और मुझे समझाने लगी, कोई बात नहीं तुम इस कमी को इतना दिल पे मत लो अल्लाह के रजा में राजी होना चाहिए इंसान को।और घबराओ मत अब मैं तुम्हारे लिए जल्दी शादी कर लूंगी। और मैं अपना बच्चा तुम्हें दे दूंगी।
मैं हैरान रह गई। और उसे कहने लगी तुम भी ना अच्छा मज़ाक करती हो। फिर सादिया ने कहा, “नहीं मैं मज़ाक नहीं कर रही हूं, मैं तुम्हें दे दूंगी। मेरे और भी तो बच्चे होंगें उनके साथ। तुम्हें एक दे दूंगी, तुम मेरे लिए दोस्त ही नहीं, तुम तो मेरी जान हो। मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकती हूं, लेकिन तुम्हारे चेहरे पर उदासी नहीं देख सकती। तुम वैसी ही रहो जैसे तुम शादी से पहले थी। वैसे ही हंसते – हंसते। और मैं कोई नई बात नहीं कर रही हूं ऐसा होता है दुनिया में। लोग अपने किसी खास लोगो से बचे रहते हैं। क्या सादिया सच में ऐसा हो सकता है फिर तो तुम जल्दी शादी कर लो। सादिया बोलने लगी शादी करने के लिए कोई लड़का भी तो होना चाहिए। तुम्हें ही ढूंढ़ना होगा। तुम अपने आरिज़ के तरह प्यार करने वाला, मेरे लिए भी ढूंढ़ना। मैंने हंसते हुए कहा, “क्यों नहीं, जरूर तुम्हें भी प्यार करने वाला पति मिल जाएगा। तुम कोई कम प्यारी हो। मैं दुआ करूंगी तुम्हारे लिए।”
सादिया बोल रही थी और मैं बस यहीं सोच रही थी कि सादिया का कितना बड़ा दिल है। क्या वो मेरी तसल्ली के लिए इतनी बड़ी बात कही है या फिर? सच कहूं तो वो मुझे बच्चा दे पाएगी अपना? मैं सोचो में गुम थी जब सादिया बोलने लगी कहा खो गयी?
चलो कोई अच्छी बात करते हैं। शादी के बाद की कुछ बातें बताओ, यही वह आरिज़ है ना जिनसे तुम्हारा रिश्ता पहले ही लग गया था। तुम्हें तो आरिज़ के घरवालों ने किसी शादी में पसंद किया था ना? मैंने कहा, “हैं, तुम्हें तो सब पता ही है। बातो बातों में इतनी देर हो गई कि आरिज मुझे बुलाने आ गए। और शर्माते हुए दरवाजे के पास से मुझे आवाज दिए और मैं बोली आप चलिए मैं आती हूं। सादिया कहने लगी रुको ना। अभी और बातें करते हैं। मैं बोली नहीं, आरिज इंतजार कर रहे हैं। तुम्हें पता है मुझसे बात करने में तुम्हें घंटो बीत जाएंगे लेकिन वक्त का पता नहीं चलेगा। चलो कल दिन में हमलोग बात करेंगे खूब सारी। ये कह कर मैं चली आई आरिज के पास।
मैं आई तो आरिज थोड़ा उदास थे। काहने लगे मैं कब से इंतजार कर रहा था। मैं बोली कि फिर क्यों नहीं आप भी आ गए हमलोग के पास। आप दरवाजे के पास से क्यों आवाज दे रहे थे। अंदर नहीं आ सकते थे? रुकें मैं आपसे दोस्ती करवा देता हूं। आपको पता है सादिया बहुत अच्छी है। और बहुत ही प्यारी बातें करती है। फिर हमलोग सो गए। सुबह जब आंख खुली तो मैं उठी। सादिया के पास गई और उसे चाय देते हुए बोली कि बिस्किट भी ले लो। मैं जा रही हूं थोड़ी देर में जुबैदा बुआ आएगी मेरी। फिर उसकी कहानी सुनना एक से एक घर की कहानी ले के आती है। खूब बातें करते हैं हमलोग।
सादिया बोली, “तुम अभी भी बुआ के साथ वैसे ही रहती हो? उसके घर की कहानी सुनना याद है। तुम्हारी वो बुआ मैमून बुआ जिसकी बेटी को तुम अपने साथ रखती थी। और तुम तो उसको अपने सारे पुराने कपड़े, और मेकअप का सामान, ईयरिंग्स, सैंडल सब इस्तेमाल करने के लिए देती थी
सादिया बोली, “तुम अभी भी बुआ के साथ वैसे ही रहती हो? उसके घर की कहानी सुनना याद है। तुम्हारी वो बुआ मैमून बुआ जिसकी बेटी को तुम अपने साथ रखती थी। और तुम तो उसको अपने सारे पुराने कपड़े, और मेकअप का सामान, ईयरिंग्स, सैंडल सब तुम देती थी। और धीरे – धीरे वो तुम्हारी हर चीज पहन के, तुम्हारा हर स्टाइल सीख ली। तुम कितनी बेवकूफ थी जो तुम अपने जैसा उसे बना रही थी।
जब वो आई थी कैसे पुराने कपड़े पहनती थी और तुम तो बिल्कुल नए कपड़े दे दिया करती थी। बाद में वो लगती ही नहीं थी की वो नौकरानी है। मैं बोली मुझे अच्छा लगता था ये सब करना। तुम्हें पता है वो जो शरमुन बुआ थी उसकी बेटी को तो मैं अम्मी से छिपा कर कपरे दिया करती थी, कहती थी कि ले जाओ लेकिन मेरे यहां पहन के कभी मत आना वरना अम्मी जानेगी तो बहुत बोलेंगी मुझे।
सादिया हंसने लगी और बोली और साएमा जो तुम्हारे साथ कॉलेज में पढ़ती थी। उसके लिए तुम एक्स्ट्रा लंच ले के जाती थी। और हमेशा फंक्शन में पहनती थी तुमसे कपड़े ले कर और तुम भी बेवकूफ इस्तेमाल करने के लिए दे दिया करती थी। मैं बोली, “बेचारी गरीब थी। उसके पापा नहीं थे उसकी माँ कैसे – कैसे पढ़ा रही थी। और वो मुझसे माँगी थोड़ी थी, वो पूनम से बात कर रही थी कि मेरे पास के फंक्शन में पहनने के लिए कोई कपड़ा नहीं है सबलोग कितने अच्छे कपड़े पहन के आएंगे। मैं भी वही पे सुन रही थी और तुम्हें पता ही है कि मैं किसी को मुश्किल में नहीं देख सकती और मेरे पास बहुत ऐसा सूट नया – नया था जो मुझे पसंद नहीं था। तो मैं नहीं पहनती थी इसलिए मैं सोची कि चलो हम इसे कोई इस्तेमाल के लिए दे दूंगी।”
फिर मैं बोली, “साएमा तुम मुझ से ले लो सूट।” वो हैरान रह गई, सुन के बोली, “सच में तुम दोगी क्या?” मैं बोली हां। चलो मेरे घर। मैं उसको घर लाई और उसे बहुत सारे कपड़े दिखाए जो नया थे लेकिन मैं पहनती नहीं थी और वो हैरान थी इतने सारे सूट देख के। फिर मुझ से एक बैंगनी रंग का सूट वो ली। और वो दुसरे दिन पहन कर आई। मुझे बहुत ख़ुशी हुई उसे देख के। मैं हर रोज लंच भी एक्स्ट्रा ले जाने लगी उसके लिए। फिर इस तरह वो मुझे बहुत प्यार करने लगी।
सादिया कहने लगी, “तुम हर किसी को हमेशा कुछ ना कुछ देती ही रही हो। जिसे किसी चीज की जरूरत नहीं है। किसी को प्यार, किसी को खुशी तो किसी को मदद जो तुमसे हो सके। मैं बोली, “हां, ऐसे अभी भी बहुत सारे किस्से है जो तुम नहीं जानती। खैर मुझे देर हो रही है मैं आरिज को उठाने जा रही हूं। ऑफिस के लिए देर हो जाएगी। मेरी वजह से वह जल्दी उठ गई थी।
मैं आरिज़ के पास गयी और उनको जगा कर, मैं उनके कपड़े रख कर। मैं किचन की तरफ चली गई। जुबैदा बुआ को देर कर रही थी आने में। मैं खुद ही हॉल के फर्श पे सब्जी काटने के लिए बैठ गई और सादिया को आवाज दी। वो आई तो मैंने कहा कि तुम भी यहीं पे बैठ जाओ। इतने में बुआ आ गई। मैं पूछने लगी, “क्यों बुआ इतनी देर क्यों हुई।” तो वह कहने लगी कि क्या बताउ बहुत परेशान थी। मैं समझ गई हमेशा की तरह इनकी कोई ना कोई कहानी होगी। इसलिए मैं बोली कि आप जाएं पहले चाय पी ले। और ये सब्जी काट लेगी। बनाउंगी मैं खुद और आपकी कहानी आरिज़ के जाने के बाद सुनूंगी। सब बता के मैं चली गई।
आरिज के जाने के बाद मैं और सादिया हाल में बैठ के बात कर रहे थे। बुआ फर्श साफ कर के वाशिंग मशीन से कपडे ला के डाल रही थी। जब मैं बोली थी कि बुआ अब बताए क्या बात है तो बुआ आ के फर्श पर बैठ गई और कहने लगी की मेरी नतनी सलमा, वो वापस आ गई मेरे पास। उसको उसका सौतेला बाप नहीं रखेगा। बीच में सादिया पूछने लगी की इनकी बेटी क्या दूसरी शादी करी थी।
बुआ बताने लगी, “मेरी बेटी का नाम नन्हीं है उसका पहला पति शराबी था। और सबसे अच्छा कर्ज लेता था ऐसा ही करते – करते कर्ज ज्यादा हो गया। वो कमाता कम था। और शराब में सारे पैसे खर्च कर लेता था फिर जब लोग अपना कर्ज वापस मांगने लगे तो वो शहर छोड़ के भाग गया। फिर कभी वापस नहीं आया। नन्ही बहुत ढूंढी लेकिन पता नहीं चला। साल दो साल गुजर गए कोई कहता था कि दूसरे शहर जा के वहां दूसरी शादी कर लिया। इसलिए नन्ही का हम दूसरा शादी कर दिये और नन्ही की बेटी को हम रखे थे। फिर वो ले गई थी लेकिन नन्ही को भी तो अपने दुसरे शौहर से बच्चा है फिर उस शौहर का भी पहली वाली से बच्चा। ये सुन के मैं खूब हंसने लगी
और मैं कहने लगी कि तो इसका मतलब नन्ही के ज्यादा बच्चा होने और ज्यादा खर्च की वजह से उसका शौहर सलमा को नहीं रखेगा? बुआ बोली हां।
मैं बोली, “जाने दीजिए आप फ़िक्र ना करें। खाना खा लीजिए।” फिर बुआ चली गई तो सादिया कहने लगी कि तुम्हारे यहां भी जितनी सारी बुआ थी सबकी ऐसी ही कोई ना कोई कहानी हुआ करता था। और हम लोग सुन के कितना हंसते थे ना। मैं बोली, हां। फिर मैं बोली, चलो छोड़ों ये सब बात। चलो मैं तुम्हें शादी की एल्बम दिखाती हूं।
हमलोग बहुत सारी पिक देखे। पिक्स देखते – देखते हमलोग खूब बातें किए। आरिज के आने का टाइम हो गया तो मैं तैयार होने चली गई। फिर आरिज आए। आज खाने के टेबल पर मैं, सादिया आरिज़ थे और वह अपने पहले की कुछ बात बता रही थी। मैंने देखा दोनों हंस रहे थे। इस तरह मुझे आज अच्छा लगा। चलो थोड़ा इन लोगो की जान पहचान हुई।
रात में मैं फिर से आरिज को छोड़ के सादिया के पास चली आई। लेकिन आज मैं आरिज के सोने के बाद आई थी। फिर हमलोग हमेशा की तरह खूब बाते किए और आ के वापस सो गई। सुबह फिर उसी तरह उठी। सादिया के पास गई, चाय दी और जैसे ही सादिया पूछी बुआ आई वैसे ही बुआ आ गई। फिर मैं बुआ का भी चाय ले के आ गई। और हमलोग सोफ़े पे और बुआ फ़र्श पे सबलोग बैठ के चाय पी रहे थे।
जब बुआ कहने लगी, “सलमा आई तो है लेकिन बस टीवी देखने के लिए मेरे मकान मालिक के यहां ही ज्यादा रहती है। घर में रहने नहीं मांगती है।” सादिया बोली तो क्या हुआ? बुआ बोली, दिन जमाना खराब है। डर लगता है। मैं, बुआ और सादिया को छोड़ के आरिज़ के पास आई। हमेशा की तरह उनका सब काम की। वो ऑफिस चले गए। फिर बुआ अपने काम में लग गई। और मैं सादिया से बोली कि तुम अपना सब कपड़ा अलमारी में रख लो। कब तक ऐसे ही सूटकेस में रखोगी अभी तो तुमको रहना है यहाँ।
सादिया कहने लगी, हां मेरा तुम्हारे साथ बहुत मन लग रहा है। बिल्कुल पहले की तरह तुम बिल्कुल भी नहीं बदली हो। लेकिन मैं यहां कब तक रहूंगी? मैं बोली जब तक तुम्हारी शादी ना हो जाए। ये सुन के सादिया हंसने लगी।
रात को जब आरिज़ आए तो मैं और सादिया हॉल में बैठे हुए थे। अरीज़ आते ही हॉल में नहीं बैठे के कमरे की तरफ जाने लगे। और मेरे भी हाथ खींचे और मैं उन्हें भी खींचकर सोफ़ा के एक साइड में बैठा दी। फिर सादिया अपनी फ़ोन में कुछ देखने लगी और आरिज सिर्फ मुझ से कुछ-कुछ बातें कर रहे थे।
फिर मुझे कुछ अजीब सा लगा कि सादिया को इग्नोर का अहसास नहीं हो रहा हो। इसलिए मैंने सादिया से बोली कि सादिया, तुम क्यों नहीं आरिज से बात करती हो। अगर मुझे अपना मानती हो तो मुझसे जुड़े रिश्ते को भी तो अपना मानना होगा और आरिज से भी कहा कि सादिया मेरे घर में आई थी तब मेरे घर के लोगो को भी सादिया से ज्यादा मतलब नहीं रहता था तब धीरे धीरे मैं ही सब के दिलो में सादिया के लिए जगह बनाई। और इस तरह सादिया को सभी लोग मेरे ही जैसा प्यार देने लगे। और इसी तरह सादिया मेरे घर का हिस्सा बन गई। अब जबकी मेरा घर बदल गया आपका घर, मेरा घर है तो मैं चाहती हूं अब इस घर में भी सादिया उसी तरह से रहे जैसे मेरे घर में रहती थी। मेरे घर के लोगो के लिए सादिया अजनबी नहीं थी। उसी तरह आप भी सादिया को अजनबी नहीं समझे।
दोनों खामोश मेरी बातें सुन रहे थे। थोड़ी खामोशी के बाद आरिज बोले कि ऐसा नहीं है कि मैं सादिया को अजनबी समझ रहा हूं। और सादिया से बोले कि सादिया तुम इस घर को अपना ही घर समझो। और माहिरा की तरह मुझे भी अपना ही समझो। ये सुन के सादिया भी कहने लगी कि इस घर में मुझे भी कोई अंजान नहीं लग रहा है। अच्छा लग रहा है मुझे आप दोनों के साथ। मैं खुश हो गई दोनों की बात सुन के और कहने लगी ये हुई ना बात। और मैं उठ के आरिज के लिए चाय बनाने चली गई और जब हाल में मैं अपना मोबाइल लेने आई थी तो चार्ज में मोबाइल लगा रही थी तो मैं देख रही थी कि अब आरिज और सादिया दोनों बाते कर रहे थे। काफी कम्फ़र्टेबल लग रहे थे अब दोनों।
और मैं फिर किचन की तरफ चली गई चाय बन चूका था। मेरे मोबाइल पे किसी का कॉल आ रहा था। मैं सादिया को आवाज दी। मैं बोली, “सादिया जरा ये चाय निकल के कप में आरिज़ को दे दो। तुम पीना चाहती हो तो तुम भी पी लेना। मैं जरा बात कर लू किसी का कॉल आ रहा है।”
और मैं मोबाइल पर बात करने लगी। कॉल एक पड़ोस का था जिससे मेरी मुलाकात पार्क में हुई थी और तभी से दोस्ती हो गई थी। आजकल मैं पार्क नहीं जा रही थी। जब से सादिया आ गई थी। इसलिए टाइम ही नहीं मिला। वही वो पूछने लगी कि क्या बात है? आजकल पार्क नहीं आ रही हो? मैं सादिया के बारे में उसे बताई। उसपर वो बोली तब तो और अच्छा है उसे भी ले के आओ। और कहने लगी कल जरूर आना। वो भी अपने दिल की हर बात मुझसे करती थी। नहीं मिलने की वजह से हमलोग की बात देर तक हुई।
जब मैं मोबाइल रख के हाल में आई तो मैंने देखा कि दोनों बातें कर रहे हैं और किसी बात पर दोनों हंस भी रहे थे। मैं बोली, “वाह! क्या बात है अब तो लग रहा है, जैसे तुमलोग एक दूसरे को जान गए।” इस पे सादिया कहने लगी कि तुम्हारी ही नसीहतों का तो नतीज़ा है। और आरिज सादिया के इस बात पर हंसने लगे और कहने लगे कि बिल्कुल ठीक कहा तुमने सादिया। फिर मैं भी हंसने लगी और मुझे एहसास हुआ जैसे हमलोग एक परिवार बन गए।
इस तरह से दिन गुजर रहे थे अब सादिया, आरिज और मैं सब एक साथ बैठे थे। बातें करते हुए घर में काफी रौनक लगती थी। लेकिन मुझे नहीं पता था कि यही रौनक जिसे मैं खुद ही लगा रही हूं। मैं खुद ही अपनी जिंदगी में अंधेरे को बुला राही हूं।
हमेशा की तरह रविवार को आरिज बोले, “चलो घुमने चलते हैं।”
मैं बोली, “रुके सादिया को भी बोलती हूं।”
आरिज बोले, “सादिया भी साथ में जाएगी?”
मैं बोली, “हां, इसमें हैरानी की क्या बात है? सादिया क्या घर में अकेली रहेगी?”
आरिज बोले तो ठीक है लेकिन हमेशा मैं और तुम ही कहीं भी गए हो ऐसे आज सादिया का भी होना थोड़ा अजीब लगेगा मुझे, कुछ भी अजीब नहीं लगेगा और मजा आएगा।
आरिज़ बोले मुझे नहीं पता मैं इस सब का आदी नहीं हूं। लेकिन मुझे पता है तुम कभी सिर्फ अपनी खुशी नहीं देखती हो। तुम चाहती हो तुम्हारे साथ-साथ सभी लोग खुश रहें। मुझे अच्छा लगता है तुम्हारा ये मिजाज हर किसी को खुशी देना। हर किसी को अपने जैसा देखना। किसी से कोई जलन नहीं। पता नहीं कहां से लाती हो तुम अपने अंदर इतनी सादगी।
आरिज अपना मोबाइल साइड पर रख के मेरी तरफ देखने लगे और बोले एक बात पूंछूं,”क्या तुम्हें डर नहीं लगता, तुम जिस तरह हर किसी के साथ इतना सीधेपन से रहती हो कहीं तुम्हें ही कोई नुक्सान ना हो जाए। जैसे तुम सादिया के लिए सबके दिल में मुहब्बत जगाई हो। तुम्हारे जो कॉलेज की दोस्त थी जिसका नाम पंखुड़ी था। तुमने बताया था कि वो गांव से आती थी पढ़ने के लिए रोज सुबह 4 बजे उसे निकालना था क्योंकि शहर से दूर जाना था। वो बहुत सारी जगह कोचिंग क्लासेज करती थी और सबका अलग-अलग टाइमिंग होता था जो खाली टाइमिंग होता था उसे रोड पर खड़ा होना चाहिए था कभी किसी दुकान में बैठती थी और पूरा दिन भूखे प्यासे रहती थी क्योंकि उसके पास बहुत पैसे नहीं हुए करते थे फिर रात में वो अपने घर लौट जाती थी क्यों कि पढ़ने का बहुत शौक था वो डॉक्टर बनाना चाहती थी और तुमसे उसकी मुलाकात हुयी इंग्लिश स्पोकन के क्लास में।
तुमने उसकी रोज की ये मुश्किल देखी तुमने तुरंत उसकी मुश्किल को दूर किया। तुम उसे अपने घर में रहने के लिए बोली क्योंकि तुम्हारे घर में बहुत काम हुआ करते थे और तुम उसे अपने घर में रखने लगी फिर तुम अपने साथ-साथ उसे खाना भी खिलाती थी। फिर वो तुम्हारे घर में बोर न हो जाए इसलिए तुम अपनी कहानियों की किताब का इस्तेमाल करने को दिया करती थी पढ़ने के लिए। फिर तुम्हारी वो कॉलेज की दोस्त जिसे तुम अपनी ड्रेसेस दे दिया करती थी। यहां तक कि तुम अपनी बुआ की बेटी को भी बदल कर रख दी। अपनी हर चीज दे के तुम जो सबके साथ ऐसे रहती हो तो क्या तुम्हें कभी डर नहीं लगता कि कहीं तुम हर किसी की जिंदगी बेहतर बनाने की कोशिश कर रही हो तुम से ही ना आगे बढ़ जाएँ।
तुम जो देने की कोशिश करती हो सबको, चाहे वो प्यार हो मदद हो, जो भी सब ले के वो तुमसे ही ना बेहतर हो जाए और एक दिन पता चलेगा तुम सब के पीछे हो। सबको रास्ता दिखा के एक दिन ऐसा ना हो कि वही लोग तुम्हारे रास्ते में कांटे लगा दे ताकि तुम बढ़ ना पाओ। और धीरे-धीरे वो तुम्हारी हर चीज पहन के तुम्हारा हर स्टाइल सीख ली तुम कितनी बेवकूफ थी जो तुम अपने जैसा उसे बना रही थी।
जब वो आई थी कैसे पुराने कपड़े पहनती थी और तुम तो बिल्कुल नए कपड़े दे दिया करती थी। बाद में वो लगती ही नहीं थी की वो नौकरानी है। मैं बोली मुझे अच्छा लगता था ये सब करना। तुम्हें पता है वो जो शरमुन बुआ थी उसकी बेटी को तो मैं अम्मी से छिपा कर कपड़े दिया करती थी, कहती थी कि ले जाओ लेकिन मेरे यहां पहन के कभी मत आना वरना अम्मी को पता चलेगा तो बहुत बोलेंगी मुझे।
आरिज़ की ये बात सुन के मैंने कहा, “अगर हर अच्छा इंसान ऐसा सोच के अपनी अच्छाई को बदल दे तो फिर अच्छा कौन रहेगा। खैर छोड़े, चलें घूमने के लिए निकलते हैं। मैं सादिया को बोलती हूं। आप रेडी हो जाए।” और फिर हमलोग पहुँच गए एक बड़े से मॉल में। वहां पे आरिज़ को एक ड्रेस पसंद आया और उन्होंने मुझसे कहा कि ये ले लो मैं बोली की ठीक है। पहले ट्राई कर लेते है। फिर सादिया को देख के मैं बोली, “ऐसा करो थोडा तुम पहन के दिखाओ। मुझे ज्यादा आइडिया होगा तुम पे देख के।”
फिर सादिया ड्रेस ले के चली गई और थोड़ी देर में वो आई पहन के, मुझे तो अच्छा लगा, फिर मैं आरिज जो की थोड़ी दूरी पे खड़े थे मैंने बुला के कहा, “देखे ना ड्रेस कैसा लग रहा है?” आरिज़ सादिया की तरफ देखने लगे फिर मैंने महसूस किया कि आरिज़ थोडा गहरी नज़रो से सादिया की तरफ देख रहे थे। मैंने कहा, “अब बताएं भी तो?” आरिज़ कहने लगे, “बहुत अच्छी लग रही है सादिया।” मैंने कहा, “ड्रेस के बारे में पूछ रही हूँ सादिया के बारे में नहीं।” आरिज थोड़ा सा शर्माये और फिर हम और सादिया हंसने लगे इस बात पे..
फिर सादिया ने ड्रेस लेके मुझे दे दी। और कहने लगी, “ड्रेस तो बहुत ही प्यारा है। मुझे भी अच्छा लगा।” मैंने कहा, तुम्हे भी पसंद आया? उसने कहा, हां मुझे भी बहुत पसंद आया। फिर मैंने कहा आरिज को, “एक और ऐसा ही सेम ड्रेस सादिया के लिए भी ले दीजिये।” लेकिन मॉल में सेम वैसा ही ड्रेस नहीं था। फिर मैं कुछ सोची और सादिया को बोली, “ऐसा करो तुम रख लो ये ड्रेस। मैं ही कुछ और ले लेती हूँ।” सादिया खुश हो के ड्रेस रख ली। आरिज़ को जब पता चला तो पूछने लगे, “तुमने ऐसा क्यों किया?” मैंने कहा, “कोई बात नहीं मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है।”
फिर हमलोग बाहर ही डिनर कर रहे थे, दूसरी वाली टेबल पर मेरी पार्क वाली फ्रेंड मिल गई। उसकी बहन थी साथ में। मैं चली गई, आरिज और सादिया को छोड़ कर अपने फ्रेंड के पास। और उसी टेबल पर हमलोग बात करने लगे। वो मुझसे शिकायत कर रही थी, “आज कल तो तुम पार्क में आ ही नहीं रही हो। कितने दिन हुए तुमसे बात किये हुए।” मैं बोली, “आऊंगी।” फिर कुछ बातें करके, मैं वापस आई तो मैंने जो देखा मुझे थोड़ा अजीब लगा। शायद सादिया के कपड़े पे आइसक्रीम गिर गया था। जिसे आरिज अपने रुमाल से साफ कर रहे थे। फिर जब मैं पास आई तो सादिया कहने लगी, “कहां चली गई थी तुम। तुम मुझे भी साथ लेकर चलती।” मैंने कहा, “हाँ मुझे ध्यान ही नहीं रहा। ना मैं तुम्हें यहाँ छोड़ती, ना तुम्हारे कपड़े पर आइसक्रीम गिरता। और अगर मैं यहां पर होती तो ये सब शायद नहीं होता।” आरिज़ की नज़रें झुकी हुई थी मेरी बातों से। फिर हमलोग घर आ गए।
एक दिन सादिया अपनी नौकरी के लिए अप्लाई कर रही थी। और मैंने देखा कि आज सादिया बिजी है, तो क्यों ना मैं पार्क चली जाऊ। सबलोग इंतजार कर रहे हैं मेरा। और मैं सादिया को बोल के चली गई। मैं पार्क गई, मेरी दोस्त मुझे देख के बहुत खुश हुई। और जब हम दोनों बातें कर रहे थे तो और भी औरतें आकर वही पे बैठ गई। वापसी में मेरी दोस्त कहने लगी, मुझे कुछ सामान लेना है। थोड़ा तुम चलो साथ मेरे, तुम्हारी पसंद अच्छी है। और मैं साथ चल दी। मुझे देर हो गई थी आने में। और जब मैं घर आई, तो आरिज पहले ही घर आ चुके थे। पहली बार उन्होंने मुझे कॉल नहीं किये कि तुम घर में नहीं हो। कहाँ हो। और जब मैं घर पहुँची तो कोई नहीं दिखा। फिर से कमरे में गई दोनों वही बैठे थे। मैंने देखा AC की वजह से हमलोग चादर इस्तेमाल करते थे वही चादर आरिज और सादिया इस्तेमाल कर रहे थे। दोनों बैठे थे। और दोनों के पैर एक ही चादर में थे और दोनों बहुत ही कंफर्टेबल हो के लैपटॉप पे कभी सादिया टाइप कर रही थी तो कभी आरिज। शायद सादिया अपनी जॉब अप्लाई कर रही थी। और आरिज उसकी हेल्प कर रहे थे। इस तरह कभी दोनों के हैंड टच हो जा रहे थे, तो कभी कांधे। मुझे बहुत गुस्सा आया। मैं वापस चली आई। वो लोग मुझे नहीं देखे। फिर मैं बहुत कुछ सोचने लगी कि सादिया को एक गैर मर्द के साथ इतना करीब होते हुए शर्म नहीं आई, और आरिज जो कि सादिया से बात करते हुए शर्माते थे, आज एक ही चादर में दोनों के पैर टच नहीं हुए होंगे। आज वो इतना कंफर्टेबल कैसे हो गए। फिर मुझे याद आया कि मैं ही तो दोनों की बात करवाई थी।
फिर मैं जब यही सब सोच रही थी तभी सादिया आई और कहने लगी.” तुम आ गई कितनी लेट कर दी तुम, मैंने और आरिज़ ने तुम्हें कॉल करके डिस्टर्ब नहीं किया, क्योंकि काफी दिन से मेरी वजह से कहीं नहीं जा रही थी तो हमलोगो ने सोचा कि अच्छा है, तुम्हें एन्जॉय करने देते हैं।” फिर वो बताने लगी कि तुम ठीक ही कहती थी, “आरिज़ को कई सारी जॉब की कंपनी का बहुत नॉलेज है कभी हेल्प ले लेना और वाकई बहुत हेल्प किया आरिज ने, दुआ करो कहीं ना कहीं मेरा सिलेक्शन हो जाए।” और सादिया की ये बाते सुन के मुझे लगा, कहीं मैं ही तो गलत नहीं सोच रही थी। और मैंने आंखे बंद कर ली तो सादिया कहने लगी, “क्या हुआ तबियत ठीक नहीं है क्या? लाओ मैं सर दबा देती हूं।” और सादिया मेरे सिरहाने बैठ के मेरे सिर को दबाने लगी। आरिज़ भी आ गए वही पे और इस तरह हम दोनों को देख के कहने लगे, “क्या दोस्ती है, दोनों ही एक दूसरे के लिए मरती हैं।” फिर मैं सारी बातों को भूलने की कोशिश करने लगी। और खाना बनाने के लिए उठने लगी, तभी सादिया बोली, “तुम परेशान मत हो मैं खाना बना चुकी हूं।” मैंने आरिज से पूछा, “क्या पसंद है? तो उसने कहा कि भिंडी गोस्त। फिर मैं भिंडी गोस्त बना दी ताकि तुम आओ तो तुम्हें थोड़ा आराम हो जाये। और तुम्हारे आराम की वजह से आरिज़ भी मेरे साथ हेल्प किये है। भिन्डी उन्होंने ही कटिंग किये।” और सादिया की इस बात पे मेरा दिमाग फिर से सोचने पे मजबूर हो गया कि ये दोनों तो बहुत करीब होतो जा रहे हैं। सादिया कहने लगी, “कहो तो खाना निकाल दूँ।” मैंने कहा, “तुमलोग खा लो, और मेरा खाना यहीं पे ला दो।” सादिया बोली, “ठीक है।” और वो चली गई तभी मुझे समझ आया मेरी यही गलती है जो आज मुझ पर भारी पड़ रही है, मैं ही तो दोनों को एक साथ छोड़ती हूं और फिर उन्हीं लोगों को गलत कह रही हूं। ये ही सोच कर मैं उठी और सादिया के साथ मैं भी खाना निकालने में हेल्प करने लगी, फिर सब लोग साथ में डिनर किये और सो गये।
जैसे ही मैं सो रही थी, आरिज मुझसे पूछने लगे, “क्या बात है आजकल तुम बच्चे ना होने वाली बात भूल चुकी हो। डॉक्टर के पास भी नहीं जा रही हो।” मैंने कहा, “हां सादिया जब से आई तब से मेरा बहुत मन लग गया, और अब पहले जैसे अकेली नहीं होती हूं कि हमेशा यही बात सोचूं लेकिन मैं भूली नहीं हूं, मुझे तो बच्चा हर हाल में चाहिए, चाहें बाद में मुझे किसी और से ही क्यों नहीं लेना पड़े।”
आरिज कहने लगे, “यहीं मैं जानना चाह रहा था कि तुम वैसे ही सीरियस हो या फिर वक्त के साथ भूल जाओगी।” मैं नहीं समझ पाई कि अरीज़ ये सवाल मुझसे क्यों कर रहे हैं। और बहुत सारी बातों में मैं पहले से ही उलझी हुई थी और अब ये बच्चे वाली बात भी याद आ गई तो उलझने और बढ़ गई इसी उलझन में उलझते -उलझते कब मेरी आंख लग गई, पता ही नहीं चला।
आज दिन में बुआ सफाई कर रही थी स्टोर रूम का, जो कभी-कभी जब बुआ को टाइम होता था तो वो खुद से ही लग जाती थी, और मुझे भी बुला लेती थी कि बता दीजिए कौन सी चीज रखनी है और कौन सी चीजें हटानी है। फिर बुआ लूडो निकल के दी और कहने लगी कि आप और आरिज साहब कितना लूडो खेलते थे पहले, फिर आपको जब से बच्चे का टेंशन हुआ जब से तो भूल ही गई ये सब। मैंने कहा “निकाल दो अब तो सादिया आ गई है अब फिर से हमलोग खेलेंगे अब तो और मजा आएगा। हम और सादिया मिल के आरिज के साथ खूब चीटिंग करेंगे।”
शाम को अरीज़ के चाय पी लेने के बाद, मैं लूडो ले आई सादिया भी खुश हो गई लूडो देख के, कहने लगी कि याद है हमलोग तुम्हारे घर में छत पे बैठ के लूडो खेलते थे और तुम्हारे भैया हमलोगों को कहते थे कि देखो ना आँधी आ रहा है क्या और हम लोग आसमान की तरफ देखते और इधर वो चीटिंग कर लेते थे और ज्यादातर वही जीता करते थे। ये सुन के आरिज मुझसे कहने लगे कि वही से इतना चीट सिख के आई थी तभी मुझे भी हरा दिया करती थी। मैंने कहा बहुत जल्दी नहीं समझ गए खैर मैं चीटिंग बस गेम तक ही करती हूं, रियल लाइफ से नहीं, वरना कई लोग तो लोगों के लाइफ के साथ चीटिंग कर जाते हैं। सादिया कहने लगी अब लूडो स्टार्ट करें फिर हमलोग खेलने लगे। काफी एन्जॉय किये।
इस तरह अब जब भी रात में हमलोगों के पास टाइम होता था तब हमलोग लूडो खेलने बैठ जाते थे। सादिया आजकल अपने जॉब को ले के सीरियस थी। वो जल्दी सेटल होना चाह रही थी और मैं चाहती थी कि सादिया मेरे साथ ही रहे, लेकिन मैं अब आरिज और सादिया की नजदिकी से भी घबराने लगी थी। रात में सादिया लैपटॉप ले के बिजी थी वो बोली की मुझे टाइम लगेगा। मैं बोली ठीक है तुम काम करो मैं जा रही हूं सोने, मुझे नींद आ रही थी और आरिज को बोल के मैं सो गई। रात को जब मेरी आंख खुली तो मैंने देखा आरिज मेरे पास नहीं है फिर मुझे प्यास लग रही थी, मैं फ्रिज से पानी निकालने गयी और तभी आरिज की आवाज सादिया के रूम से आई दोनो के खिलखिला के हंसने की आवाज थी। खिड़की का पट थोड़ा सा खुला हुआ था। मैंने झाँक के देखा तो मैं देखि दोनों लूडो खेल रहे थे। सादिया आरिज से कह रही थी कि आपने चीटिंग की है, मैं नहीं खेलूंगी और वो लूडो अपने हाथों में ले लेती है, आरिज कह रहा था दोबारा मैं नहीं करूंगा, लूडो तो दो और सादिया नहीं मान रही थी। जिसकी वजह से आरिज जबरजस्ती उसका हाथ खींचता है और उसे बाँहों में जकड के उससे लूडो छीन लेता है, और फिर दोनों हंसने लगते हैं और दोबारा से लूडो खेलने लगते हैं।
मुझे ये सब देख के जैसे मेरी सांसे रुक गई हो, मैं जितना इन बातों को झूठलाने चाह रही थी उतना ही ये सब मेरे सामने आ रहा था तब मुझे आरिज की कही हुयी बातें याद आई जब उसने मुझसे कहा था कि कहीं ऐसा न हो कि जिसकी राहो में तुम खुशियां बिछाने चाह रही हो वही तुम्हारे राहो में कांटे डाल दें। मैं रूम में आई और बहुत सारी सोचो में डूब गई, क्या वाकई किसी के साथ अच्छा नहीं करना चाहिए, क्या दुनिया में किसी पे भरोसा नहीं करना चाहिए, चाहे वो अपना ही क्यों ना हो फिर सोचते – सोचते मैं सो गई। कब आरिज आए मुझे नहीं पता चला.. अब मैं थोड़ा चुप – चुप रहा करती थी और आरिज और सादिया दिन पे दिन करीब आते जा रहे थे। उन्हें लग रहा था कि मैं फिर से बच्चे के बारे में सोच के टेंशन ले रही हूं। इसलिए पहले की तरह नहीं रहती।
मैं दोनों को करीब आते देख रही थी और मैं सोच रही थी कि किस तरह इसका सलूशन निकालूँ, क्या सादिया को घर से जाने के लिए कहना ठीक रहेगा ये तो घर से निकालने वाली बात हो जाएगी, नहीं – नहीं मैं जिस तरह मान – सम्मान से सादिया को घर में बुलाई, प्यार दी, और आज उसे खुद से जाने का कह के मैं अपनी अच्छाई को खो दूंगी। ये मैं नहीं कर सकती, यहीं सब सोचो में उलझी रहती थी, और चुप – चुप सी रहती थी, तभी एक दिन सादिया आई वो बहुत खुश दिखाई दे रही थी, और कहने लगी कि मेरा जॉब का सिलेक्शन हो गया है बहुत अच्छी कंपनी में, लेकिन मुझे दुसरे शहर जाना पड़ेगा। मुझे थोड़ा दुख हुआ फिर मैं सोची, चलो मेरे मसले का हल तो निकल गया अब सादिया का यहां रहना ठीक नहीं था। उसे चले ही जाना बेहतर है। ये सोच के मैं इत्मिनान हो गई.. अब सादिया अपने जाने की पैकिंग कर रही थी। मैं देख रही थी आरिज़ को कोई खास दुख नहीं हुआ सादिया के जाने का सुन के फिर मैंने ही कहा कि सादिया को छोड़ आए फिर आरिज़ चले गए सादिया को ले के। अब जबकि सादिया जा चुकी थी, घर में फिर से वही सन्नाटा, फिर से अब मैं बच्चे के बारे में सोचने लगी। और आरिज़ को भी परेशान किया करती थी। एक दिन अरीज़ कहने लगे कि तुम घबराओ नहीं, मैं सोच रहा हूँ कि तुम्हारी इस ख़ुशी को मैं कैसे पूरा करूँ।
सादिया से कॉल पे कभी-कभी ही बात होती थी एक दिन वो कॉल की थी कि फिर कुछ बातें करते – करते उसने कहा कि मैंने तुमसे एक बात छिपाई है। जब मैं पूछी क्या? तो कहने लगी कि मैंने शादी कर ली है ऑफिस के ही एक लड़के से। मैं तो हैरान रह गई सुन के। मैंने कहा कि तुमने बताया नहीं हमलोग को तो कहने लगी कि हमलोग कोर्ट मैरिज किए हैं। मुझे अजीब तो लगा लेकिन मैं सोची कि अब वो बताना जरूरी ही नहीं समझी तो मुझे बोल के क्या फायदा.. मैंने कहा चलो अच्छी बात है खुश रहो और कुछ भी परेशानी लगे तो मुझ से कहना जरूर।
जब ये बात मैं अरीज़ को बताई, अरीज़ कुछ ज्यादा हैरान नहीं हुए। मुझे लगा कि आरिज को सादिया से कोई मतलब नहीं है, मैं ही कुछ ज्यादा सोचने लगी थी।
और फिर दिन यू ही गुजर रहे थे। सादिया से कभी-कभी बात होती रहती थी लेकिन वो हस्बैंड के बारे में मैं ज्यादा कुछ नहीं बताती थी बस बोलती थी कि अच्छी हूं सब कुछ अच्छा है। फिर कुछ दिनों बाद सादिया कॉल की और बताई कि मैं प्रे̮ग्नन्ट् हूं। मुझे सादिया के बारे में जान के बहुत खुशी हुई ये सोच की सादिया के बच्चे के साथ मैं बहुत खेलूंगी.. कुछ दिनों बाद जब सादिया के कॉल नहीं आ रहे थे तो मैं खुद ही कॉल कर ली। मैंने कहा क्या बात है बच्चे की खुशी मैं तो तुम मुझे भूल ही गई। सादिया ने कहा कि ऐसी बात नहीं है, मैं बहुत परेशान हूं, मेरी तबियत बिल्कुल भी ठीक नहीं रहती है और मैं अकेली हूं बहुत मुश्किल हो रही है, मैं उसके हस्बैंड के बारे में पूछी तो बोली कि बिजी रहते है। मैं देखती थी कि वो अपने हस्बैंड का ज्यादा जिक्र नहीं करती थी। बता रही थी कि एक दिन खाना बनाते हुए मुझे चक्कर आ गया था ये सुन के तो मैं हैरान रह गई और मैं झट से कह दी कि तुम मेरे यहाँ आ जाओ अगर तुम्हारे हस्बैंड को कोई प्रॉब्लम न हो तो। सादिया ने कहा कि उन्हें कोई प्रॉब्लम नहीं होगा क्योंकि मेरी तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो रही है। लेकिन बार-बार तुम्हारे घर आना मुझे ठीक नहीं लग रहा है। मैं बोली तुम्हारे तबियत से बढ़ के कुछ है क्या? एक तो मेरे बच्चे नहीं हो रहे हैं और तुम्हें अल्लाह ने ये नेअमत दी है और तुम अकेली हो तो क्यों ना हम दोनों मिल के इसका देखभाल करे, और तुम्हें क्या पता मैं तुम्हारे बच्चे के लिए कितनी ख़ुश हूँ। मैं तो खूब खेलूँगी। सादिया मेरी बाते सुन के खुश हो गई और बोली ठीक है मैं आती हूं।
फिर कुछ दिन गुजर गए सादिया नहीं आई और ना ही कोई कॉल आया और मेरा ध्यान तो पूरा उसके बच्चे की तरफ था तो मुझसे रहा नहीं गया और मैं कॉल की और पूछने लगी कि तुम आई नहीं, तो कहने लगी कि अब क्या बताऊँ मेरे हस्बैंड बिजी है और इस हालत में मैं अकेली कैसे आउ। मैंने कहा कि ऐसा करो मैं आरिज को भेज देती हूं तुम्हें लेने। तुम्हें आसानी से बच्चा हो गया इसलिए तुम्हारे हस्बैंड को कोई कद्र नहीं है। आरिज होते तो क्या कुछ नहीं करते, उनका तो बस नहीं चलता है कि वो मुझे कहां से बच्चा ला के दे दे.. खैर छोड़ों मैं आरिज को भेज दूंगी तुम तैयारी करो आने की। मैं अब सादिया और आरिज़ की पहले वाली सारी बातें भूल चुकी थी। अब मैं उन बातों को याद करती थी तो मुझे लगता था कि शायद मैं ही गलत थी इस बार सादिया के आने से मुझे कोई डर नहीं था क्योंकि अब तो उसकी शादी हो चुकी है और प्रे̮ग्नन्ट् भी है वो तो अपनी लाइफ में बहुत खुश है।
मुझे अपने आप पे ही गुस्सा आया, मैं ही दोनों को बात करने के लिए कहती थी और घुलने मिलने के लिए। जब दोनों घुल मिल गए तो मैं ना जाने क्या क्या सोचने लगी। अब मेरे दिल से ये सारी बातें निकल चुका था और मैं सादिया का फिर से पिछली दफा की तरह बेसब्री से इंतजार करने लगी। आरिज सादिया को लेने गए थे और मैं बहुत इक्साइटिड् थी सादिया को देखने के लिए, ना जाने सादिया इस हालत में कैसी लगती होगी। मैं सोच ही रही थी कि गाड़ी की हॉर्न बजी और मैं अपने बालकनी में दौड़ी और गाड़ी की तरफ देखने लगी गेट खुला और सादिया उतर ही रही थी कि उतने में आरिज जल्दी से उतर के सादिया का हाथ थाम लेते हैं और सादिया आरिज के हाथों को पकड़ के धीरे-धीरे चलने लगी फिर सीढ़ी पे भी आरिज के हाथों को पकड़ के वो धीरे-धीरे चढ़ रही थी।
मुझे थोड़ा सा अजीब तो लगा लेकिन मुझे पता था कि आरिज एक अच्छे इंसान हैं उनके अंदर बहुत हमदर्दी होती है किसी के लिए भी और सादिया तो मेरे घर की फर्द की तरह ही थी और मेरे कहने पे ही तो वो सादिया को मानने लगे। और सादिया जब मेरे पास आई तो मैं खुद ही हैरान रह गई उसे इस हालात में देख के, बहुत कमजोर हो चुकी थी सादिया। मैंने सादिया से कहा क्या हालत बना ली हो तो कहने लगी कि इस हालत में ऐसा हो ही जाता है। इस पे अरिज़ बोले कि अब ऐसा भी नहीं है अब हमलोग तुम्हारा ख्याल रखेंगे फिर देखना कितनी जल्दी तुम अच्छी हो जाओगी। फिर हमलोग खाना खाये और पहले कि तरह खूब बाते किये। आरिज़ कहने लगे कि सादिया को, कहो की आराम कर ले काफी थक गई होगी। मैं फ्रूट्स ला देता हूं। ये कह के आरिज चले गए फिर मैं और सादिया भी रूम में चले गए सादिया आराम कर रही थी और मैं उसके पास बैठ कर बातें कर रही थी। इतने में आरिज रूम में आये और सादिया से कह रहे थे कि कोई दवा भी लाना है? सादिया बोली कि आप रहने दीजिये। तो आरिज कहने लगे कि अभी तुम हमारे घर में हो तो हमलोग की जिम्मेदारी हो।
चलो प्रिस्क्रिप्श्न् दो, मैं फ्रूट्स लेने जा रहा हूं तो मेडिसिन भी ला दूं और अब सेहत पर ध्यान दो ताकि बच्चा सही सलामत हो जाए। आरिज ने मुझसे कहा कि चाय बना दोगी तो मैं चाय के लिए किचन में चली गई। जब मैं चाय ले कर आई तो मैं देखी कि आरिज और सादिया बिल्कुल करीब बैठे थे और प्रिस्क्रिप्श्न् देख रहे थे। जब मैं आई तो कहने लगे कि सादिया को क्यों ना हमलोग कोई अच्छे डॉक्टर के यहां ले चले ताकि आगे का चेक अप अच्छे से हो सके, मैं बोली कि कह तो आप ठीक रहे हैं, लेकिन सादिया अपने पति से एक बार पूछ ले। इस पे सादिया कहने लगी कि नहीं मेरे पति को किसी बात से कोई ऐतराज नहीं है मेरे पास उतना टाइम नहीं है इसलिए तुम्हें जैसा ठीक लगे करो। मेरे हस्बैंड कहते हैं। ये सुन के मैं आरिज से कहने लगी, ठीक है आप कोई अच्छे डॉक्टर का पता कर लो फिर हमलोग दिखा देते हैं सादिया को। शाम में आरिज बिलकुल टाइम पे घर पहुंच गए थे। मैं आरिज को इतना जिम्मेदार देख सोचती थी कि आरिज मेरे बच्चे की शौक कि वजह से इतना ख्याल करते हैं। क्योंकि मैं अरीज़ को हमेशा कहती थी कि सादिया के बच्चे के साथ मैं बहुत खेलूंगी मैं तो उसको अपने पास ही रखा करुँगी। बस दुआ करे की खैर खैरियत से बच्चा हो जाए। और मैं ही आरिज से कहती थी कि सादिया के बच्चे के मामले में कोई कोताही नहीं होना चाहिए। हमलोग से। सादिया का बच्चा समझे मेरा बच्चा, खाला बनने वाली हूं मैं और खाला मां की तरह होती है आप सोच भी नहीं सकते मैं कितनी खुश हूं।
आरिज मेरी तरफ देखते और कहते कि बस तुम इसी तरह हमेशा खुश रहो। तुम्हारी ख़ुशी के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। इस तरह सादिया का जब अरीज़ ख़्याल रखते थे तो मैं बहुत ख़ुश होती थी कि अरीज़ मेरी ख़ुशी का कितना ख़्याल कर रहे थे.. मुझे पता नहीं था कि जिसे मैं ख़ुशी समझ रही थी वो मेरी ज़िंदगी का रोग बन जाएगा। जो शायद मेरी सांसें बंद होने के बाद ही मेरा पीछा छोड़ेगा.. शायद मैं समझ पाती लोगो के चेहरे। जो अंदर से कुछ और होता है बाहर से कुछ और। शायद यहाँ हर चेहरा ऐसा ही है जिसपे एक नकाब है।
कमरे से अरीज़ और सादिया की कहकहे की आवाज़ आई तो मैं कमरे की तरफ बढ़ी तो मैं देखी कि सादिया रेडी थी डॉक्टर के यहाँ जाने के लिए। सादिया बहुत प्यारी लग रही थी इस हालत में। औरत के अंदर एक अलग ही कशिश आ जाती है जो सादिया के चेहरे से नुमाया हो रहा था। सादिया जैसे ही उठी कहने लगी कि कामजोरी सा लग रहा है। आरिज कहने लगे कि अब डॉक्टर कुछ विटामिन की दावा देंगे तो थोड़ा बेहतर फील करोगी।
फिर मुझे ख्याल आया जूस का। मैं बोली रुको मैं जूस ला देती हूं। सादिया कहने लगी मुझसे नहीं पिया जाएगा। आरिज कहने लगे कि नहीं पियोगी तो बेहतर कैसे होगी। और मैं चली गई जूस लेने। मैं किचन में थी और आरिज आवाज दे रहे थे जल्दी करो डॉक्टर का अपॉइंटमेंट है लेट हो जाएगी।
मैं जूस लाई तो बोले जाओ तुम रेडी हो जाओ। जूस मैं सादिया को दे दी लेकिन वो कह रही थी कि मुझसे नहीं पिया जाएगा। मुझे कुछ खाना पीना अच्छा नहीं लग रहा है। जैसे ही मैं रूम से निकल रही थी आरिज उसे जूस ले के खुद से पिला रहे थे और कह रहे थे कि तुम्हारी वजह से आज डॉक्टर का अपॉइंटमेंट छूट जाएगा.. मुझे थोड़ा अजीब लगा, लेकिन डॉक्टर के यहां जाने की जल्दी में मैं कुछ सोच नहीं पाई और हमलोग निकल गए डॉक्टर के यहां के लिए। जब हमलोग डॉक्टर के यहां उसके चैंबर में पहुंचे तो डॉक्टर मुझसे कह रही थी कि हस्बैंड वाइफ को रहने दे और आप बाहर मैं बैठें। मैं बोली, आपको गलतफहमी हो रही है ये मेरे हस्बैंड हैं और ये मेरी फ्रेंड है। फिर डॉक्टर ने कहा, सॉरी मुझे लगा ये इनके हस्बैंड है.. फिर डॉक्टर ने सादिया को टेस्ट लिखी, मेडिसिन लिखी और कहने लगी कि बहुत कामजोर है, बहुत ध्यान देना होगा इन्हे, ताकी बच्चा तंदरुस्त रहे।
हमलोग घर आए सादिया की तबियत ठीक नहीं थी वो आते ही सो गई.. कल सादिया को टेस्ट के लिए जाना था मैं थोड़ा फिक्रमंद थी कि सब सही हो। सुबह हुआ और मुझे ध्यान आया सादिया के टेस्ट का मैं सादिया को जगाई सादिया रेडी हुई जाने के लिए आरिज आए मुझे देख के कहने लगे कि तुम रेडी नहीं हो मैं बोली मुझे तो घर में काम है और मेरा वहा क्या काम, आप लोग ही चले जाएं। आरिज बोले जैसे तुम ठीक समझो। फिर सादिया और आरिज चले गए। उसी तरह सीढ़ी पे अरीज़ के हाथों को पकड़ कर सादिया धीरे-धीरे उतर रही थी और मैं भी ऊपर से चिल्ला रही थी कि अच्छे से ले के जाईयेगा सादिया को। और मेरी ये बात सुन के आरिज कहने लगे कि मुझे पता है तुम्हारे फ्रेंड को कुछ हुआ तो तुम मेरी जान ले लोगी… और हमलोग हंसने लगे। कहते हैं वक्त के साथ लोग बदल जाते हैं लेकिन वक्त के साथ मेरे अपने ही प्यार भरे रिश्ते बदल जाएंगे ये मेरे वहमो गुमान में नहीं था।
मैं उन लोगों की वापसी का इंतजार कर ही रही थी, इतने में दोनों आ गए। आरिज मुझसे कहने लगे कि सादिया तो अपना ख्याल नहीं करती है तुम्हें और मुझे ही ख्याल रखना पड़ेगा। क्योंकि बच्चा बहुत कमजोर है। टाइम पे मेडिसिन और खाने पीने में बहुत ख्याल रखना होगा। ये कह के आरिज चले गए। मैं ये सब सुन के सादिया से कहने लगी कि तुम अपने हस्बैंड को बोलती, कम से कम मिलाने ही आ जाते। इस पे सादिया कहने लगी, रहने दो वो नहीं आएंगे अब तो उनका ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया, कह रहे थे कि तुमलोग की वजह से बहुत इत्मिनान है। वो तुमलोग को इस तरह ख्याल करते देख के उनको तुम लोगों पर बहुत भरोसा हो गया है। कह रहे थे कि नेक्स्ट मंथ डिलीवरी है और मेरा अभी-अभी प्रमोशन हुआ है, ऐसे में छुट्टी नहीं मिल पायेगा। मगर जैसा ही हो जाए बच्चा तुमको मैं यहीं बुला लूंगा फिर तुम्हें कोई समस्या नहीं होगी।
मैं ये सब सुन के कहने लगी कोई बात नहीं तुम फिकर मत करो हमलोग है ना, हा मगर बच्चा होते ही मैं नहीं जाने दूंगी मुझे भी तो बाबू के साथ खेलना है, और वैसे भी तुम इतनी विक हो जाओगी, कैसे जाओगी। इसपे सादिया कहने लगी की हा – हा क्यों नहीं बच्चा तो तुम्हारा ही है, तुम्हारे ही वजह से तो मैं ये बच्चा की हूं। मैं उसकी बातों की गहराइयो को समझ नहीं सकी। काश मैं समझ जाती काश।
दिन गुजराते जा रहे थे आरिज सादिया का वैसा ही ख्याल रखा करते थे कभी अपने हाथों से जबरजस्ती दूध पिलाते कभी मेडिसिन। मैं कभी – कभी देख के सोचती काश ये बच्चा मुझे होता तो आरिज ऐसे ही मेरा भी ख्याल करते। और वो दिन भी आ गया जब एक दिन सादिया बहुत ज़ोर ज़ोर से दर्द से चिल्ला रही थी हमलोग जल्दी जल्दी डॉक्टर के यहाँ पहुँचे। सादिया को एडमिट कर लिया गया डॉक्टर थोरी देर में आए और आरिज़ से कहने लगे कि आपको सिग्नेचर करना पड़ेगा ऑपरेशन के लिए। आरिज़ पेन ले के सिग्नेचर कर दिये। हमलोग दुआ कर रहे थे थोड़ी देर में एक नन्हा मुन्हा बच्चा ले के डॉक्टर हमलोग के करीब आये और बोले मुबारक हो बेटा हुआ है। और बच्चे को अरीज़ के गोद में दे दिया। अरीज़ बहुत प्यार किये बच्चे को। और मुझे देते हुए बोले, लो अब तुम्हारे बच्चे का शौक पूरा हो गया। मैं कितनी नासमझ थी जो कुछ समझ नहीं पा रही थी। मैं भी बच्चे को गोद में ले के बहुत खुश हुई। मुझे इतने छोटे बच्चे का छोटे – छोटे हाथ और उंगलियों को देख बहुत प्यार आ रहा था। इतने में बच्चा रोने लगा और डॉक्टर कहने लगे कि इसे भूख लगी है। माँ को दीजिये दूध पिला देगी। और हमलोग बच्चे को ले के सादिया के पास गए। सादिया तो जैसे बेहोश ही थी। उसकी हालत बहुत ही ज्यादा खराब थी। मैं बच्चे को दे के घर आ रही थी ताकि उसके लिए कुछ खाने का ले आउ। आरिज को मैंने कहा, आप रुकें यहां, मैं घर जाऊंगी, कुछ बना के ले आउ सादिया के लिए। अस्पताल का खाना तो खाया नहीं जाएगा। आरिज़ बोले ठीक है तुम जाओ मैं यहाँ रुकता हूँ। मैं घर आ गई.
घर से मैं टिफिन तैयार कर के हॉस्पिटल गई जैसे ही सादिया के वार्ड में गई मैं दरवाजे पे ही रुक गई, सादिया बच्चे को गोद में लिए हुए थे और आरिज़ बार-बार बच्चे का माथा चूम रहे थे और सादिया का हाथ आरिज के हाथ में था। मैं देख के सोचने लगी कि ऐसी ही एक मुकम्मल फैमिली होती होगी, जिसमें एक प्यार करने वाला शौहर, प्यारी सी बीवी और छोटा सा बच्चा। आरिज, सादिया और बच्चे को देख के लग रहा था जैसे ये एक मुकम्मल फैमिली है। आज पहली बार मुझे एहसास हो रहा था कि मैं अलग हूं, फैमिली तो ऐसी होती है। ये मेरी जिंदगी की मायूसी और गम का पहला दस्तक था। मैं सोच ही रही थी कि मेरे कदम जैसे रुक गए, इतने में आरिज आए और मेरा हाथ पकड़ कहने लगे यहां क्या कर रही हो अन्दर आओ हमलोग कब से इंतजार कर रहे हैं तुम्हारा।
मैं अंदर गई सादिया बच्चे को मेरी गोद में दे के कहने लगी लो अपने नन्हें मुन्ने बच्चे को। सादिया के मुंह से मेरा बच्चा सुन के मैं सब भूल गई और मैं बच्चे के साथ खेलने लगी.. आज सादिया हॉस्पिटल से घर आने वाली थी। मैं बेबी के वेलकम के लिए घर को अच्छे से डेकोरेट की। मैं बहुत खुश थी मेरे घर में छोटा सा बेबी आ रहा था फिर शाम को आरिज सादिया बेबी के साथ घर आ गए। आज मेरे घर में रौनक ही रौनक था।
यहीं रौनक एक दिन मेरे घर को ही नहीं मेरे दिल को भी अँधेरे से भर देगा जिसकी कोई इंतेहा ना होगी। यही चेहरे जिन्हे देख के मैं खुश हुआ करती हूं इन्ही लोगो से मैं नजरे नहीं मिला सकूंगी और न ही चुरा सकूंगी.. शाम को आरिज मार्केट से आए, बेबी के लिए बहुत सारे कपड़े और खिलौने ले के। मैं सब देख के सोचने लगी की आरिज को बच्चे का कितना शौक था जो मैं पूरा ना कर सकी इसलिए वो सादिया के बच्चे से अपना शौक पूरा कर रहे हैं.. फिर आरिज मुझे कपड़े दे के कहने लगे लो तुम अपने हाथों से पहनना दो.. मुझे बहुत ख़ुशी हुई कपड़े पहनने के बाद। सादिया मुझ से कहने लगी कि बेबी का कोई नाम तुम सोची। मैं बोली नहीं तुम माँ हो तुम रखो नाम। इस पे सादिया कहने लगी कि ये क्या बात हुई मैं माँ हूँ तुम कुछ नहीं ये बच्चा तुम्हारा है, तुम्हारे शौक की वजह से मैं बेबी की हूँ ताकि तुम्हें बच्चे की कमी ज्यादा फील न हो। वरना तुम्हें लगता है कि मैं बच्चे के झमेले में पड़ती। मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी खुशी के लिए इस बच्चे को जन्म दी हूं। भूल गई जब मैं आई थी तुम्हारे यहां, तुम बहुत उदास थी और जब मैंने पूछा तो तुम बच्चे की वजह बताई। और मैंने उसी वक्त कहा था ना, तुम से कि अब तुम फिकर ना करो मैं तुम्हें बेबी दूंगी.. और सादिया की ये बात सुन के मैं हैरान रह गई कि सादिया इतनी अच्छी है दिल की जो अपने बच्चे जो कि जान से भी प्यारा होता है वो मुझे दे देगी कैसे, लेकिन मुझे क्या पता था कि वो जान से प्यारा बच्चा मेरे ही जान से जुड़ा हुआ था वो अगर अपना अनमोल चीज मुझे दे रही है तो बदले में मुझ से मेरी अनमोल चीज ले के ही दे रही है.. दिन गुजर रहे थे मेरे घर का माहौल पूरा बदला हुआ था जब हमलोग सब साथ बैठे होते तो मुझे बहुत अच्छा महसूस होता था और जब भी मैं आरिज और सादिया को बेबी के साथ देखती थी तो मुझे अलग ही महसूस होता, ऐसा लगता था जैसे मैं ही अलग हूं और वो लोग एक मुकम्मल फॅमिली। कभी आरिज और सादिया दोनों साथ मिल के दवा पिला रहे होते कभी कपडे पहनाने में हेल्प कभी सुलाने में और कभी डॉक्टर के यहां साथ जा रहे होते हैं।
एक दिन सादिया बोली कि मेरा टिकट हो गया है मैं चली जाऊंगी। अब सुनते ही मैं तो एकदम उदास हो गई। मैं कैसे रहूंगी बच्चे के बिना, मैं ये सब सोचने लगी और बहुत मायूस हो गई.. जब से मैं सादिया के जाने का सुनी थी मैं बहुत उदास रहने लगी थी। कल सादिया जाने वाली थी। मैं बेबी के लिए कुछ चीज लेने मार्केट गई थी। मेरा बस नहीं चल रहा था कि मैं क्या क्या खारिद दूँ। बेबी के लिए उसकी हर जरूरत की चीज जो मुझे याद था मैं ले ली। मैं सोच रही थी कि पता नहीं सादिया के हस्बैंड इतना ख्याल बेबी का रखेंगें या नहीं, जितना मैं और आरिज़ रखते हैं। और सभी चीजें ले के मैं घर आई कमरे की तरफ बढ़े तो आरिज और सादिया कुछ बातें कर रहे थे जैसे ही मैं बढ़ रही थी आरिज, सादिया से बोले कि तुम सच क्यों नहीं बता रही हो आयज़ा को। ये लफ़्ज़ सुनते ही मेरे कदम रुक गए।
सुनते ही मेरे होश उड़ गए। और मैं रूम में दाख़िल हुई आज मैं बहुत गुस्से में थी मैं चीखने लगी आख़िर ऐसा क्या सच है जिसे तुम लोगों ने मुझसे छिपा रखा है बताओ क्या बात है। सादिया की नज़रें झुकी हुई थी और आरिज़ कहने लगे कि कोई तुमसे कुछ नहीं छिपा रहा है बस वक़्त का इंतज़ार कर रहे थे हमलोग। बताने से पहले तुमसे यही कहूंगा कि तुम पहले पूरी बात सुन लेना फिर जो तुम्हें ठीक लगे बताना, ये यकीन करो कि हमलोगो ने जो कुछ भी किया सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी खुशी के लिए।
जब सादिया को तुम इस घर में बुलाई थी, कुछ नहीं जानता था उसके बारे में तुम चाहती थी कि हमलोग घुल मिल जाएं और ऐसा ही हुआ। जब मैंने देखा कि सादिया को जितना तुम चाहती हो उतनी ही सादिया भी तुम्हें चाहती है। तुम्हें तो पता ही है कि मैं अकेला रहा हूं क्योंकि मैंने जिन रिश्तों को देखा है वहां मुहब्बत नहीं देखा, मतलब परस्त लोग देखा मैंने। और तुम अपने से हर जुड़े हुए रिश्ते का ऐसा किस्सा सुनाती थी जिसमें मुहब्बत ही मुहब्बत था और इसी रूप में मैंने सादिया को देखा..तुम्हारी बहुत फिक्र किया करती थी। वो तुम से जुड़ी हुई थी इसलिए मुझे सादिया अच्छी लगने लगी और हमलोग में एक अच्छी दोस्ती हो गई। जब से तुमने सादिया को तुम अपने बच्चे न होने की बात सादिया को बताई और जब वो तुम्हारा ये दुख देखी तो वो हमेशा मुझ से कहा करती थी कि काश मैं कुछ कर पाती।
जब भी तुम नहीं होती और हमलोग अकेले होते थे तो यही बात करते थे कि तुम्हें इस दुख से कैसे निकाला जाए।
और फिर एक दिन हमलोग बात किये क्यों न हमलोग निकाह कर लें और एक बच्चे को जन्म दे तुम्हारे लिए।
यहां तक कि तुम्हारी खुशी के लिए सादिया इस पे भी राजी थी कि मैं बच्चे को देख कर चली जाऊंगी। अगर आयज़ा चाहेगी तो कभी-कभी बस मुझे बच्चे से मिलने दे दिया करेगी। लेकिन बच्चे को कभी नहीं बताया जाएगा कि उसकी मां मैं हूं। और मैं भी कभी भी उसपे अपना हक नहीं जतऊँगी ये मेरा वादा है.
और इस तरह सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी खुशी के लिए हमलोगो ने इस बच्चे को जन्म दिया। अब और कुछ आरिज़ कहते हैं कि मैं चीखने लगी। अब बस करो इस से पहले कि मेरी सांसें रुक जाएं बस कर दो।
मेरी हालत बिगड़ रही थी सादिया पानी का गिलास दे रही थी मुझे और आरिज़ कह रहे थे कि शांत हो जाओ तुम्हें ऐसी हालत में कभी नहीं देखा कहीं तुम्हारी तबीयत ना ख़राब हो जाए। मैं तुम्हें खुश देखना चाहता हूं। मेरी जात को मिटा के आप मुझे खुश देखना चाहते हैं। हम और आप तो एक लिबास थे उसे आपने अलग कर दिया। मुझे ख़ुशी देने के लिए ये कैसी ख़ुशी है। और सादिया की तरफ देखते हुए मैं बोली, और तुम जो मुझे बच्चे दे के मेरी महरूमी को दूर करना चाहती थी मेरे आरिज़ को बांट के। ये सब कहते कहते मैं कब बेहोश हो गई मुझे पता ही नहीं चला।
जब मुझे होश आया तो मेरे पास बच्चे की रोने की आवाज थी, मैं जल्दी से बच्चे को गोद में ले ली और सादिया को देने के लिए उठ गयी, तभी आरिज़ कहने लगे कि सादिया चली गयी और कह रही थी मेरी वजह से आयज़ा को इतना दुख पहुंचा कहना हो सके तो उसके लिए मुझे माफ़ कर दे। मुझे यकीं है धीरे-धीरे जब बच्चे के साथ खेलेगी, एक माँ का एहसास होगा उसे तब शायद आयज़ा ये सब भूल जाए। तुमलोग खुश रहो बच्चे के साथ मैं चलती हूँ।
धीरे-धीरे वक्त गुजर रहा था बच्चे को जब भी मैं देखती थी मुझे सारे किस्से याद आ जाते हैं मुझे लगने लगता है कि मैं इस बच्चे के साथ इन्साफ नहीं कर पा रही हूं और फिर मैंने एक फैसला किया मैं नहीं रखूंगी बच्चे को इसका हक़दार सादिया है बच्चे माँ के कलेजे का टुकड़ा होता है सादिया बच्चा मुझे दे तो दी लेकिन जिस दर्द से वो गुजर रही होगी मैं समझ सकती हूँ क्योंकि मैं भी एक औरत हूँ, एक औरत ही औरत का दर्द समझ सकती है। और मैं तो उनलोगों में से कभी नहीं थी जो मतलबी हो, अपनी खुशी के लिए किसी और की खुशी छीन ले। और मैं बच्चे को दे देती हूँ। खुदगर्ज चेहरे पर नकाब, धोखा जैसा घटिया चीज इन सबको कभी भी मैं अपनी जात में शामिल नहीं कर सकती। मैं तो बस मुहब्बत करना सीखी हूं चाहे लोग मेरे साथ जो करें।
जिंदगी बनती है किरदार से. बस अपना किरदार निभाओ किसकी होगी जीत किसकी होगी मत ये मत सोचो…
Writer: Farhat Jahan
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