एक प्यारा एहसास । a lovely feeling । Dedicated to that best girl Farah । Sahil Hasan

a lovely feeling

आज फिर मेरी नजर पार्क के उस कोने वाली बेंच पर चली गयी जहाँ पिछले एक हप्ते से उस इन्सान को बैठे अक्सर देखता हूँ। मेरे फ्लैट से नौ सौ मीटर के दूरी पर है मुंशी प्रेम चन्द्र पार्क, जहाँ मैं हर शाम को जाता हूँ। यह एक छोटा सा पार्क है जो मुंशी प्रेम चन्द्र के नाम पर बना है। छोटे बच्चों और बड़ो के लिए झूला लगा हुआ। मैं जब भी आता हूँ तो मुझे यहाँ झूला झूलना अच्छा लगता है। कुछ फूलों के पौधें भी लगे है और छोटे – छोटे कई तरह के पेड़ हैं। कई सारे बेंच हैं जिस पर लोग बैठते हैं। बहुत बड़ा तो नहीं पर छोटा – सा पिकनिक स्पॉट भी है।

वैसे तो हर रोज़ वहां बहुत भीड़ होती है लेकिन सन्डे को कुछ ज्यादा ही चहल – पहल होता है। मैं पिछले सन्डे को लेट हो गया था। पचीस फ़रवरी की शाम को तकरीबन साढ़े सात बजा होगा जब मैं पार्क गया था। अब काफी लोग घर जाने लगे थे। मैं भी अपने पसंदीदा बेंच पर जाकर बैठ गया। जिस तरफ मैं बैठता हूँ वहां थोड़ी दूर पर एक और बेंच है। आज उस पर एक आदमी बैठा हुआ था। उस आदमी के दाढ़ी और बाल काफी बढ़े हुये थे। बाल बिखरे हुए थे। ध्यान से देखने पर लग रहा था की वह तीस या इकतीस साल का होगा।

मैं उस दिन ध्यान नहीं दिया लेकिन दूसरे दिन भी वह उसी तरीके से बैठा था। न जाने क्यों मैं जानना चाहता था उसके बारे में लेकिन मुझे सही नहीं लगा की कुछ पूछूं। और आज पूरे एक हप्ते हो गए थे उसे देखते हुए। कुछ सोचते हुए मैं भी उसी बेंच के दूसरे किनारे पर जाकर बैठ गया।

कुछ देर मैं इधर – उधर देखता रहा फिर मैंने पूछा, “सर! क्या मैं आपसे बात कर सकता हूँ?” शायद वह सुना नहीं था इसलिए मैंने फिर ऊंची आवाज़ में पूछा, “सर! क्या मैं आपसे बात कर सकता हूँ?” इस बार ऐसा लगा जैसे वह नींद से जगा हो। थोड़ी देर तक मुझे देखता रहा जैसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो। फिर बोला, “क्या आप मुझे जानते हैं?”

“नहीं, लेकिन कई दिनों से आपको देख रहा हूँ आप काफी दुखी नज़र आते हैं। अगर आप गलत न समझें तो क्या मैं जान सकता हूँ आपकी परेशानी?” मैंने कहा।

वह एक बार बोलने की कोशिश किया लेकिन वह बोल नहीं पाया। फिर थोड़ी देर बाद तकलीफ़ भरे आवाज़ में बोला, “मैंने उसे खो दिया। और अब मैं अकेला हूँ”

मैंने पूछा, “आप ठीक तो हो, किसे खो दिया?”

फ़रह को…. लगा था की वह मेरी है, लेकिन शायद वह मेरी नहीं थी। उसे कभी मुझसे प्यार ही नहीं था। कहती थी शादी के बाद मुझसे प्यार करेगी या फिर जो भी उसका सहारा बनेगा। पर यकीं भी तो कोई चीज़ होती है। प्यार भी कोई करने वाली चीज़ है, मैं जब छोटा था तब से लोगों ने यही बताया की प्यार हो जाता है। और फिर मैंने यह भी सुना लोगों से ही की प्यार किया जा सकता है।

अब सोचता हूँ कौन लोग सही हैं। या दोनों सही हैं। यह भी कोई बात हुआ, गुमराह करके रख देते है। मैं सोचता था की काश उसे मुझसे शादी से पहले प्यार हो जाये, मैं उसे पसंद आऊँ पर उसे नहीं हुआ। शायद मैं ही उसे पसंद नहीं था।” वह बोलते – बोलते रुका। एक गहरी साँस लेने लगा, साँस भी ऐसी जैसे वह इसके बाद कोई और साँस नहीं लेना चाहता हो। मैं उसके चेहरे को देखता रहा।

थोड़ी देर यूँही ख़ामोशी में गुजर गया। मैंने पूछा, “सब ठीक तो है?”

वो चुप्पी को तोड़ते हुए बोला, “कुछ भी ठीक नहीं हुआ और न है।”

“क्या मैं कोई मदद कर सकता हूँ?” मैंने पूछा।

“नहीं! मैं खुद भी नहीं कर सकता।” वह बोला।

न जाने क्यों मुझे उसके बारे में सबकुछ जानना था। इसलिए मैंने फिर बोला, “मुझे सब कुछ शुरू से बताओ।”

“न जाने खुदा ने इसकी शुरुआत कहाँ से की होगी पर मैं फ़रह से तब मिला था जब मैं काफी दुखी हो गया था अकेले रहते – रहते। मुझे उसका फ़ोन नंबर किसी मोबाइल एप्प पे मिला था। सच कहूँ तो मुझे खूबसूरती कभी अपनी तरफ नहीं खींचती है लेकिन उसकी बातें मुझे अच्छी लगती थी। उसकी आवाज़ मुझे बहुत अच्छी लगती था। उसे मैं कई घंटों सुनता था उसके बाद भी मेरा मन नहीं भरता। शायद वह अपनी खूबसूरती की तारीफ मेरे जबान से सुनना चाहती थी और मैं चाहता था की जब मैं उससे मिलूं तो वह मेरी आँखों में देखकर जान ले।…”

वह फिर साँस लेने के लिए रुका।

“अगर मैं उसकी तस्वीर की बात करूं तो मुझे किसी शायर की ये ग़जल याद आ जाती है —
काली जुल्फें भोला मुखड़ा लब पे तबस्सुम शोख अदा
तस्वीर का ये आलम है तो हुस्न मुज्ज़सम क्या होगा।।

वह इतनी ख़ूबसूरत है दिल से भी और चेहरे से भी की लफ्ज़ भी कम पड़ जाएँ उसकी तारीफ में।

मेरे कलम शब्दों में कहां बांध पाएंगे उसकी खूबसूरती को,
जब भी पन्नों पर स्याही बिखरती है उसका नाम ही लिख पाते हैं

उसकी ऑंखें काली हैं और इतनी गहरी की समंदर भी उसमें समां जाए। हमेशा उनमें एक चमक होती हैं जो किसी भी इन्सान को अपनी तरफ आकर्षित कर लें। जब कभी भी उस तस्वीर को देखता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे मुझे देख रही हो और कहती हों की मैं उनमें खो जाऊं। मैं ही क्या कोई भी इन्सान उनमें खो जाए। और शायद इसीलिए मैं खो गया।

उनके चेहरे का अक्स नजर आता है हमारी आंखों में,
ये देखकर लोग अब हमारी आंखों से भी जलने लगे हैं।

उसके चेहरे में कुछ ऐसी कशिश है जो देखने वाले के नज़रों में एक मुस्कान भर दे।

उसके चेहरे की चमक ही ऐसी थी कि सब कुछ सादा-सादा सा लगने लगा,
उसकी खूबसूरती में इस कदर खो गए कि फलक पर चांद भी अधूरा सा लगने लगा।

यह आईना क्या देगा उनके हुस्न की खबर,
मेरी आंखों से आकर वो पूछें कि कितने खूबसूरत है वो।

लोग कहते हैं, उनका महबूब चांद का टुकड़ा है,
कौन उन्हें समझाए कि खुद चांद मेरे महबूब का टुकड़ा है।

उसके होंट जैसे गुलाब हों,

नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है

यही चेहरा यही आंखें यही नजाकत बस यही रंगत निकले,
तराशूं जब मैं कोई ख्वाब, तो बस तेरी सूरत निकले।

मैं कैसे जी पाऊंगा फ़रह तुम्हारे बगैर।

उसकी बातें दीवाना बना देती है,
उसकी मुस्कान हर गम भुला देती है,
आंखों की मासूमियत के क्या कहने,
जिधर नजर भर देख ले उसे पाक कर देती है।

तुम्हारे बिना मैं तो अधूरा हूँ। काश की तुम मेरी हिस्सा होती। काश की हम साथ होते। काश की तुम मेरी नसीब होती।

अगर नसीब ख़राब हो तो ,
रास्तें में पड़े पत्थर भी गहरी चोट देते हैं।।

एक बार फिर वो बोलते – बोलते रुक गया था। और फिर वह चुपचाप उठकर चला गया। मैं उसे पुकारता ही रह गया था। मैं आज भी पार्क गया था लेकिन वह नहीं आया। काफी दिन बीत गए पर फिर उससे मुलाकात नहीं हुई।

कुछ दिनों पहले की बात है, मुझे किसी काम से पटना जाना पड़ा। और फिर पटना से मैं मोतिहारी गया। मेरा काम पूरा हो गया तो मैं यूँ ही घुमने लगा। सिनेमा रोड पर पेंटालून का शोरूम देखकर मैं रुका, और यह मात्र एक संयोग था की तभी मेरी नज़र मुंशी प्रेम चन्द्र पार्क में मिले उस इन्सान पर गयी जो कोने वाले बेंच पर बैठा मिला था। वह एक मकान के सीढ़ियों से उतर रहा था। पिछली बार मैं उसका नाम भी नहीं पूछ पाया था। इसलिए मैंने सोचा की इस बार उसका नाम भी जरूर पूछ लूँगा।

मैं थोड़ा तेज़ी से चिल्लाया, “अरे भाई रुकना।”

वह आवाज़ सुनकर मेरी तरफ मुड़ा, और फिर मुझे देखकर उसके चेहरे पर एक मुस्कान दिखाई दिया। वह मेरी तरफ धीरे – धीरे चलते हुए आया।

मैंने पूछा, “क्या भाई आप फिर पार्क नहीं आये और अब आप यहाँ मिल रहे हो। चक्कर क्या है? क्या हुआ, सब ठीक तो है?”

अभी वह कुछ जवाब देता की तभी मुझे उसका नाम पूछने वाली बात याद आ गयी। मैंने कहा, “कुछ भी बताने से पहले आप अपना नाम बता दो?”

“मेरा नाम रेहान है।” उसने बताया।

“क्या! सचमुच आपका नाम रेहान है?” मैं क्या पर जोर देते हुए बोला।

“हाँ! क्या आपका भी नाम रेहान है?” उसने मुझसे पूछा।

मैंने कहा, “नहीं, मेरा नाम तो साहिल है।”

“ओह! ओके।” रेहान ने जवाब दिया।

“फिर उसके बाद क्या हुआ था रेहान साहब?” मैंने पूछा।

“क्या हम कहीं बैठकर बात करें?” रेहान ने कहा।

“हाँ, क्यों नहीं। ऐसा करते हैं रेलवे स्टेशन चलते हैं, वही पर बैठकर बात करना सही रहेगा। यहाँ तो सभी स्टोर भरा हुआ है।” मैंने कहा।

“ठीक है।” उसने जवाब दिया।

फिर हम दोनों चुपचाप उस भीड़ भरे रास्ते पर चलने लगे। तकरीबन एक किलोमीटर का दूरी होगा क्योंकि मेरा जीपीएस स्मार्ट वाच इतना ही दूरी बता रहा था।

हम लोग रेलवे स्टेशन पर बने ईंट और सीमेंट के छोटे से दीवार पर बैठ गए। फिर रेहान ने अपनी कहानी बतानी शुरू किया।

“मैं अब अक्सर फ़रह से बात करने लगा। फ़रह अपने बारें में सब कुछ बताने लगी। अपने बचपन की बातें और भी बहुत कुछ। मैं उसको सुनता रहता था। मुझे बहुत अच्छा लगता था। मेरी ज़िन्दगी बहुत सिंपल रही है इसलिए भी मुझे लोगों की बातें बहुत अच्छी लगती है। उनकी ज़िन्दगी, दोस्त, सिस्टर्स, और ब्रदर्स या फिर प्यार की बातें। मुझे सभी इस दुनिया में रहने वाले लोग और उनकी कहानियां अच्छी ही लगती है। हर किसी की अपनी कहानी है और उस कहानी का नायक या नायिका वह इन्सान ही होता है या होना चाहता है। फ़रह भी अपनी बहुत सारी छोटी – बड़ी कहानियां बताती थी जो मुझे हमेशा ही अच्छा और सच्चा लगा।”

फिर वह रुका और पानी का बॉट्‌ल्‌ बैग से निकालकर पानी पीने लगा। मैं स्टेशन कैंपस में बने मंदिर को देखने लगा। और ये सोच रहा था, हम सभी कहीं से आये और हम सभी को कहीं तो जाना है। इस ज़िन्दगी के कुछ पल भी हम ख़ुशी से नहीं जी पाते हैं। दिल में गिले – शिकवे हमेशा जगह बनाये रखते हैं। कभी किसी की बात बहुत गलत लगती है तो कभी उस इन्सान जैसा सच्चा कोई और नज़र नहीं आता है।

हम गलतियाँ करते हैं और फिर कहते हैं की गलतियाँ तो इन्सान से ही होती है। थोड़ी अलग है लेकिन यही सच है। मैं अपने ही ख्यालों में था जब रेहान कुछ बताना शुरू किया तो मेरे सोचों का सिलसिला टूटा। रेहान बता रहा था….

“फ़रह की वह बात याद आ रही की कैसे वह अपने घर के छत की रेलिंग पर खड़ी होकर बगल के मिश्रा जी के घर की तरफ देखती थी या फिर वहां खड़ी होकर ब्रश करती थी और उनके घर में लगे फूलों को एन्जॉय करती थी। उसके घर के सामने एक सिनेमा घर था। जब कभी नयी फिल्म लगती थी और उन्हें देखना होता था तो आसानी से देख लेती थी।”

फिर वह मेरे टखने पर हाथ से छूते हुआ कहा, “पता है साहिल, मैं उसकी हर छोटी बात को बहुत ध्यान से सुनता था, सोचता था की जब कभी भी उसको याद करूं तो उसकी आवाज़ मुझे सुनाई दे। ऐसा लगे की वह मेरे पास ही है और मेरे कानों में कुछ कह रही हो। मुझे उसकी आवाज़ आज भी उसी तरह याद है जैसे वो बोलती थी।”

वह बोलते – बोलते थोड़ी देर के लिए रुका …. कुछ सोचते हुए भाव से कहने लगा।

“आज मैं जो यहाँ तुमसे मिला हूँ इसका सिर्फ इतना मतलब है की मैं उन सभी जगहों को देखना चाहता था जहाँ से वो गुजरी हो। मैं उस घर की दीवार देखना चाहता था जहाँ उसने अपनी बचपन गुजारी है। जहाँ वह खेल – कूद कर बड़ी हुई। उसके हंसने की आवाज़ को महसूस करना चाहता था। और जब उसके छत की रेलिंग के सहारे खड़ा था तो मैं ये सोच रहा था की वह किस तरह यहाँ खड़ी होकर मुस्कुराते हुए दिखती होगी।”

मुझे रेहान अब कुछ दीवानों जैसा लगने लगा था। आज – कल कौन ऐसा सोचता है। कोई नहीं जानना चाहता है की उसके साथी का बचपन कैसा गुजरा है। बहुत कम लोग ऐसा करते हैं या महसूस करते हैं। फिर वो आगे कुछ बोल रहा था मैं उस पर ध्यान देने लगा ….

“मैं थोड़ी देर के लिए सीढ़ियों पर बैठ गया। मुझे लगा शायद कभी वो भी इसी तरह बैठी होगी और अपने किसी भाई – बहन या सहेली से इन सीढ़ियों पर बैठकर मुस्कुराते हुए बातें की होगी। उन दीवारों को हाथ से छूते हुए उसके हाथों को महसूस करने लगा जब उसने चढ़ते हुए टच किये होंगे। शायद गर्मी के किसी उदास भरे दोपहरी में चुपचाप अकेली बैठी हो कुछ सोचते हुए। या ज़िन्दगी के ताने – बाने बुने हों। ख़ूबसूरत सपने देखें हों। शायद कभी सामने की दीवार को घूरते हुए समय बिताया हो। फिर मैं बगल के टूटे हुए दीवार को देखा।”

वह एक बार फिर गहरी साँस लेने के लिए रुका था। और फिर उसके आगे बताने लगा ..

“फ़रह बताती थी की एक बार उसके फादर और अंकल में कुछ बात हुई थी जिसके वजह से उसके घर के बीच में एक दीवार उठा दिया गया था। पर उसके अंकल की बेटी उसकी फ्रेंड थी। वह दोनों बात करने के लिए उस दीवार के ऊपर से एक – दूसरे के घर चली जाती थीं। कुछ दिनों बाद घर के लोगों को उनकी इस तरह से मिलना देखकर उस दीवार के कुछ हिस्सों को तोड़कर आने – जाने के लिए रास्ता बना दिया। कितना ख़ूबसूरत एहसास हैं जब सभी आपको प्यार करने वाले मिलते हैं। आपकी बातों को मानतें हैं। ऐसी ही थी मेरी फ़रह।”

मेरी तरफ देखते हुए बोला, “साहिल साहब, मेरी ट्रेन तीन बजे है, मैं आपको अपना फ़ोन नंबर तो नहीं दे सकता हूँ पर गोरखपुर में मेरा घर है और मैं अक्सर शाम को मुंशी प्रेम चन्द्र पार्क या नेहरु पार्क की तरफ आता जाता रहता हूँ। आप से अगली बार जब मुलाकात होगी तो कोशिश करूंगा अपनी कहानी पूरा बता दूँ। अब मुझे इज़ाज़त दीजिये।”

मैं उसे देखने लगा, और ये सोच रहा था की न जाने कब मैं इस कहानी को मुकम्मल कर पाऊँगा।

मुझे किसी शायर की ये लाइन याद आ गयी …

फिर ज़िन्दगी की फिल्म मुकम्मल न हो सका
वह सीन कट गया जो कहानी की जान थी।

आज रेहान से मिले दो महीने हो गया था, सन्डे का दिन था मैं और भाईजान लंच करने के बाद पार्क गए थे। भाईजान एक बेंच पर बैठ गए और मैं झूला – झुलने लगा। मैं एक पुराना गीत गा रहा था …

ज़िन्दगी प्यार का गीत है
इसे हर दिल को गाना पड़ेगा
ज़िन्दगी ग़म का सागर भी है
हंस के उस पार जाना पड़ेगा

तभी मुझे एक आवाज़ सुनाई दिया, मेरे पीछे से … जो इस गीत में आगे की लाइन को गा रहा था …

ज़िन्दगी एक अहसास है
टूटे दिल की कोई आस है
ज़िन्दगी एक बनवास है
काट कर सबको जाना पड़ेगा

मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वह रेहान था। मेरे होंठों पर मुस्कुराहट आ गयी। मैंने सोचा आज रेहान के कहानी को पूरा सुनकर ही घर जाऊँगा।

वह मेरी तरफ देखते हुए कहा, “और साहिल साहब कैसे हो?”

“मैं तो ठीक हूँ। रेहान साहब आप कैसे हो?” मैं जवाब देते हुए पूछा।

और रेहान जवाब में कुछ शायरी सुना दिया …

ख़ैरियत से जब ख़ैरियत पूछी हमारी,
चाह कर भी न बयां कर सके हालत हमारी
शक तो उन्हें भी हुआ हमारी शख्सियत पर,
ठहर वो भी न पाए देखकर बेबसी हमारी

और आगे सुनिए साहिल साहब …

पैगाम भेजा है हमने हवाओं के साथ,
ख़ैरियत उनकी वो लाते ही होंगे
पहुँचाकर उन तक ये संदेसा हमारा,
उनको हमारा हाल बताते ही होंगे

साहिल साहब, ये दुनिया उन्हीं की खैरियत पूछती है जो पहले से ही खुश हों।
और जो तकलीफ में होते हैं उनके तो नंबर तक खो जाते हैं।।

मैं मुस्कुराते हुए कहा, “वाह! वाह! क्या बात है, कितनी ख़ूबसूरत शायरी कही आपने। दिल खुश कर दिया।”

वह कहती थी की मुझे शायरी नहीं आती, न कहानियां पूरा करना आता है
लेकिन हमारे बीच के फासलों ने मुझे शायर बना दिया।

मैं आशिक था किताबों की दुनिया का
मगर उसने हकीकत में इश्क करना सिखा दिया।

मैं एक बार फिर वाह! वाह! कह उठा।

कुछ देर हम दोनों खामोश रहे। फिर मैं बोल पड़ा, “रेहान साहब आगे क्या हुआ था।”

“उस टूटे हुए दीवार को देखता रहा और कुछ पिक्चर्स भी लिया। फिर मैं नेशनल सिनेमा तक गया कुछ देर खड़ा रहा वह सारी जगहों पर गया जिसका जिक्र मेरी फ़रह ने किया था। फिर विमेंस कॉलेज की तरफ गया। उसने चंदामामा शॉपर स्टॉप के बारे में बताया था वहां भी गया था। और याद के लिए मैंने टी-शर्ट भी ख़रीदा। ये जो टी-शर्ट मैंने पहनी ये मैंने वहीँ ख़रीदा था।”

मैंने कहा, “इसका कलर तो काफी ख़ूबसूरत है।”

“हाँ, उसको ये कलर पसंद था।” रेहान ने कहा।

“आप तो पूरे रोमांटिक लाइफ जी लिया उसके साथ।” मैंने अपनी राय दिया।

“हम सचमुच में कभी नहीं मिले। यहाँ तक की हमने कभी विडियो कॉल पर भी बात नहीं किये।

उनकी खामोशियां बोल देती है, जिनकी बात नहीं होती,
प्यार वो भी करते हैं,
जिनकी कभी मुलाकाते नहीं होती।।

कुछ ऐसा ही रिश्ता रहा अपना। हमारा रिश्ता सोच में भी पाक़ था। कभी गलती से भी गलत नहीं सोचा हमने।” रेहान ने बताया।

जब आप इतनी मोहब्बत करते थे तो फिर आप दोनों मिले क्यों नहीं? मैंने सवाल किया।

“शायद मेरे नसीब में फ़रह नहीं थी। जब हम पहली बार बातें करना शुरू किये थे तब कुछ दिनों तक तो किये पर फिर अचानक से हम दोनों बात करना छोड़ दिए। अभी हमने कोई वादे नहीं किये थे और फिर बातें करना छोड़ दिए। पहली रात तो ऐसा लगा जैसे कुछ बॉडी से कुछ ख़ाली – ख़ाली सा हो गया है। बहुत ज्यादा मिस कर रहा था। मैं काफी परेशां रहने लगा। ज़िन्दगी जैसे वीरान सी हो गयी। अकेलापन मुझे सताने लगा। कई दिनों तक उसके कॉल का इंतज़ार करता रहा पर उसका कोई कॉल नहीं आया। उसकी कुछ परेशानियाँ थी। मुझे लगा शायद उसको मैं पसंद नहीं आया।”

रेहान बताते – बताते रुका …

“एक दिन रात में मेरे पास एक कॉल आया। यह कॉल एक लड़की की थी। जिसको मेरा नंबर उस मोबाइल एप्प से मिला था। इस परेशां दिनों में यह एक सहारा जैसे था। धीरे – धीरे वह मुझसे बातें करने लगी और फिर मैं कुछ अच्छा महसूस करने लगा। मैं अपने ज़िन्दगी के सबसे कमज़ोर पलों में था और उन पलों में उसका सहारा मुझे अच्छा लग रहा था। मुझे लगा अगर यह भी मुझे फ़रह की तरह छोड़ कर चली गयी तो मेरा जीना तो मुश्किल हो जायेगा। इसलिए हमने साथ चलने के लिए कुछ वादे किये।

और फिर ..

एक दिन फ़रह का मेसेज आया। उसे मुझसे बात करनी थी। उसे भुला ही कब था। और मैं कभी उसे भूल भी नहीं पाऊँगा और भूलना भी नहीं चाहता। फिर उस रात हमने ढेर सारी बातें की। और कुछ दिन बातें की। मैंने अपने ज़िन्दगी में आने वाली उस दूसरी लड़की से कई सारे वादे किये थे। और उसको तोड़ना मुश्किल था।

कुछ वादें ऐसे भी होते हैं जिन्हें तोड़ा नहीं जा सकता और कभी कोई इस तरह ज़िन्दगी में शामिल हो जाते हैं जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता है..

हाँ अगर वह लड़की मेरी लाइफ से जाना चाहती तो कोई बात नहीं था लेकिन उसको मुझसे और मेरी बातों से प्यार हो गया था। मुझे लगा अगर मैं उसे छोड़ता हूँ तो उसे भी ऐसा ही लगेगा जैसा मुझे लग रहा था, जब फ़रह ने मुझसे बातें करना छोड़ दिया था।

मैंने फ़रह को उस लड़की के बारे में बता दिया था। फ़रह ने मुझे यह समझाया की हमारा बिछड़ना ही सही रहेगा और आज मैं इस हाल में हूँ। क्या करूं एक तरफ कुछ वादे और एक तरफ बिछड़ने का ग़म। बस यही मेरी कहानी है। और शायद अब मुझे इसी कशमकश में जीना पड़ेगा।

इक मुलाक़ात जो अधूरी रह गई
इक बात जो अनकही रह गई
इक याद जो दिल से भुलाई न गई
इक कहानी मोहबत्त की अधूरी रह गई

जिस पल तेरी आवाज सुनी थी
वो बात याद आती है
तुझसे जो बात करता था वो बात याद आती है
दिल में एक उदासी उमड़ आती है
मेरे तन्हां रह जाने की एहसास दिलाती है

ए काश की आज ये शाम
मेरी आख़िरी शाम हो
न उसे याद करने का ग़म हो
और न दिल उदास हो”

मुझे भी रेहान की कहानी सुनकर बड़ा तकलीफ हुआ और तभी मुझे ये लाइन याद आ गयी ..

गुजर रही है जिंदगी तुझसे मुलाकात हो जाए
या खुदा काश ये इत्तफ़ाक़ हो जाए
अगर बिछड़ना ही लिखा है तूने मेरे हिस्से तो क्या हुआ
काश की उनसे एक मुलाकात हो जाये

A lovely feeling

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