Kya Ye Ishq Tha
सुमन अपने घर के सामने बने लॉन में वाक कर रही थी जब उसकी सहेली आदिशा आई। आते ही उसने सुमन के कंधे पर हाथ रख दी। और कहने लगी, “सुमन तुम्हें पता है आज राहुल और सुनील का झगड़ा हुआ।”
“क्या?” सुमन ने पूछा।
“हाँ! आज राहुल ने लंच पार्टी दिया था और वह सुनील को इन्व़ाइट करना भूल गया। लंच पार्टी के बारे में जब सुनील को पता चला तो वह नाराज़ हो गया।”
“हाँ तो ठीक किया सुनील ने। वह राहुल का बेस्ट फ्रेंड है और उसी को उसने इन्व़ाइट नहीं किया।” सुमन ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा।
“तुम तो ऐसे न कहो सुमन! राहुल बहुत अच्छा है और सभी के साथ कितना अच्छे से रहता है। अब गलती से भूल गया तो उसे बुरा नहीं मनाना चाहिए।” आदिशा ने कहा।
“अब हम लोग क्या कर सकते हैं। चलो छोड़ो उनकी बातें। तुमने साइंस का असाइनमेंट पूरा कर लिया?” सुमन उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए पूछा।
“अरे कहाँ! मैं तो तुमसे यही पूछने आई थी। मेरे तो कुछ पले ही नहीं पड़ रहा है।” आदिशा ने भौहें सिकोड़ते हुए बताया।
“हाँ तो तुम अपने उस समझदार भाई चंदर से पूछ लेती?” सुमन ने दूर पेड़ पर बैठी कोयल को देखते हुए कहा।
“नहीं भाई मुझसे उनसे नहीं पिटना है। वह बात – बात पे कहने लगते हैं चलो जाओ मुझे अपने एग्जाम की तैयारी करनी है।” आदिशा ने चंदर के बिगड़ने पर जैसा वह मुहं बनाता था उसी तरह से नक़ल करते हुए कहा।
“अभी कौन – सा एग्जाम?” सुमन ने हैरानी से पूछा क्योंकि अभी कुछ दिन पहले ही वो कोई एग्जाम दे रहा था।
“आरे इन्टर्नल एग्जाम है भाई साहब का। और क्या तुम नहीं जानती मेरे पढ़ाकू भाई को। वो हमेशा किताबों में ही घुसे रहते हैं मम्मी और पापा के पढ़ाकू बेटे। मैंने तुम्हें कितनी दफा कहा है की कोई चक्कर चलाओ, और नहीं तो कम से कम अपने प्यार के जाल में फंसाती तो थोडा ध्यान पढाई से हटता।” आदिशा ने जवाब देते हुए कहा।
“मुझे नहीं करनी है तुम्हारे पढ़ाकू भाई से प्यार। तुम्हारे भाई को पढ़ने और डाटने के अलावा कुछ नहीं आता है। मैं तुम्हारे भाई की शक्ल तक नहीं देखना चाहती हूं। याद है पिछली दफा हमने उनके बर्थडे पर आइसक्रीम और फिल्म दिखाने की फरमाइश पर कितना बड़ा लेक्चर सुनना पड़ गया था। मैंने उसे दिन कान पकड़ लिया की मजाल जो अब मैं कभी उनसे कुछ कहूं।” सुमन ने जले हुए आवाज में कहा।
“अब ऐसे तो मत कहो मेरे भाई के बारे में। वह थोड़ा पढ़ाकू टाइप है न, इसलिए वो ऐसे हैं। बचपन से ही वह एक बेहतरीन इंजीनियर बनना चाहते हैं। और अब वह बीटेक फाइनल ईयर में है, इस साल पूरा मार्क्स एड किया जाता है इसलिए कुछ ज्यादा मेहनत कर रहे हैं। पिछले 3 सालों से वह नंबर वन पोजीशन पर है। अगर इस साल भी उन्होंने टॉप किया तो किसी बढ़िया से कंपनी में जॉब मिलेगी और बहुत अच्छा पे भी।” आदिशा ने भाई का पक्ष लेते हुए कहा।
“ठीक है भाई जैसे भी हो तुम्हारे भाई, मुझे क्या मतलब है मेरी बला से। वह जैसी भी रहे। चलो मैं तुम्हें असाइनमेंट दे देती हूं मैंने पूरा कर लिया है।” सुमन ने कहते हुए घर की तरफ चल दी।
“शुक्रिया मेरी सबसे प्यारी और इकलौती सहेली को। आदिश ने कहा।
“अब चलो रहने दो, यही सबसे प्यारी सहेली का किताब तुम मीनू को भी दे चुकी हो। मैं तुम्हारी बातों में नहीं आने वाली।” सुमन चलते-चलते बोली।
“कैसी बात करती हो सुमन। सिर्फ तुम मेरी सबसे प्यारी सहेली हो। उसे तो मैं ऐसे ही कह रही थी ताकि अच्छे से ट्रीट ले सकें। तुम्हें तो मैं अपनी भाभी बनाना चाहती हूं।” अभी आदिश कुछ और बोलती तब तक सुमन की मां मीरा देवी आ गई और वह उनसे खैरियत पूछने लगीआदिश “कैसी है आंटी?”
“मैं तो ठीक हूं। तुम बताओ और तुम्हारी मम्मी कैसी है?” वह जवाब देते हुए पूछीं। “मम्मी तो अच्छी हैं आंटी। आप गांव से कब आई।”
“कल ही तो आई हूं और तुम्हारे अंकल वही गांव में रुक गए हैं। तुम बताओ तुम्हारा भाई चंदर कैसा है?”
“वो तो ठीक है आंटी। अपने इंटरनल एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं। आदिशा ने जवाब दिया।
“भगवान उसको अच्छे नंबर से पास करें। बड़ा ही नेक बच्चा है।” सुमन की माँ मीरा देवी ने कहा। सुमन उनके कंधे पर खुद को टिकाते हुए कहा, “बच्चा मम्मी! वह बच्चा तो किसी तरह नहीं दिखते हैं।” मीरा देवी ने सुमन को परे धकेलते हुए कहा, “चल दूर हट जा सुमन। चंदर के बारे में कुछ नहीं सुनूंगी। चलो जाओ और आदिशा के लिए चाय बना लो।” सुमन किचन में चली गई तो मीरा देवी और आदिशा से बात करने लगे।
अभी वह लोग बात कर ही रहे थे कि तभी चंदर आदिशा को बुलाने आ गया। चंदर को देखते ही मीरा देवी बोल उठी, “आओ चंदर, अंदर आ जाओ।”
“नहीं आंटी, मैं अंदर नहीं आऊंगा। मम्मी ने आदिश को बुलाने भेजा था। वह छोटे अंकल गांव से आए हैं, और मम्मी के सिर में काफी दर्द है, इसलिए भेजा है कि आदिशा घर जाकर चाचा के लिए कुछ चाय वगैरा का इंतजाम करें।” चंदर ने जवाब दिया। तभी आदिशा बोली, “आ रही हूं थोड़ी देर में। आप चलो।”
“ठीक है आंटी, मैं जा रहा हूं जरा इसको जल्दी से भागा दीजियेगा अपने घर से।” चंदर हंसते हुए चला गया।
“देख रही हैं आंटी, इसी तरह से सभी मुझे सता रहे होते हैं। आदिशा रूहंशी होते हुए बोली।
“तुम छोड़ो चंदर की बातों को। चलो शाबाश पकौड़ा खाओ और चाय पियो।” मीरा देवी ने आदिशा को समझाते हुए कहा। तभी सुमन चाय और पकड़ा लेते हुए आई थी और पूछने लगी, “क्या हुआ मां, कौन आया था? क्या चंदर आया था?”
“हां! और कौन आएगा इस समय। चलो मेरी बेटी पकोड़े खाओ नहीं तो ठन्डे हो जाएंगे और चंदर की बातों को भूल जाओ। मीरा देवी आदिशा से फिर कहा।
“इसको क्या हुआ, जो आप मना रहीं हैं।” सुमन सूकड़े हुए आदिशा के चेहरे को देखकर पूछा।
“कुछ नहीं हुआ तुम असाइनमेंट की नोटबुक लाओ, मुझे जल्दी जाना होगा। वो छोटे अंकल गांव से आए हैं ना।” आदिशा एक पकौड़ा दांतों तले दबाते हुए कहा।
सुमन असाइनमेंट की नोटबुक लेने चली गई। वो असाइनमेंट की नोटबुक लाई तो आदिशा और मम्मी किसी बातों में बिजी थे। आदिशा ने चुपचाप नोटबुक ली और घर को चली गई।
सुमन फिर से लॉन में आ गई और टहलने लगी। उसे चंदर की याद आ गई। चंदर वास्तव में बहुत ही मेहनत ही था। हमेशा पढ़ाई की बात करता रहता था। सुमन को पढ़ना पसंद था, लेकिन उतना नहीं। उसे चंदर बहुत पसंद था। देखने में चंदर बहुत गोरा तो नहीं था लेकिन ठीक था। गेहुआं रंग, दुबला पतला शरीर लेकिन देखने पर वह अच्छा लगता था। उसका बात करने का अंदाज बहुत अच्छा लगता था। वह हमेशा सामने वाले को सुनता था, फिर अपनी बात रखता था। यह बात सुमन को बहुत अच्छी लगती थी। सुमन काफी देर तक इन्हीं ख्यालों में गुम थी। जब मम्मी ने आवाज दी, सुमन आज डिनर में मेरी मदद नहीं करोगी क्या? आठ बज गया है। जल्दी आ जाओ।
सुमन सुनकर होश में आई और फिर अंदर की तरह भागी। रविंद्र जी इंडियन पुलिस सर्विस में एसीपी के पोस्ट पर कार्यरत थे। उनकी वाइफ मीरा देवी और उनकी इकलौती बेटी सुमन थी। गांव में बाप – दादा की काफी ज़मीने थी वह और उनकी वाइफ मीरा देवी अक्सर गांव जाया करते थे। और कोई था नहीं।
इधर सुरेंद्र जी उनके बचपन के दोस्त थे। सुरेंद्र जी इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे और विद्युत विभाग में कार्यरत थे। सुरेंद्र जी का घर थोड़ी दूरी पर था। जब रविंद्र जी के पिताजी शहर में घर बनवा कर रहने आए तो रविंद्र जी 10 साल के थे। और उनकी दोस्ती सुरेंद्र से हो गई दोनों हम उम्र थे। इसलिए साथ-साथ पढ़ाई भी किये। और एक अच्छे पड़ोसी का हक भी अदा कर रहे थे। सुरेंद्र जी की वाइफ गीता देवी थी। सुरेंद्र जी के दो बेटे थे। सुबोध जो कि बड़ा बेटा था, उसने एमबीए करके एक बड़ी कंपनी में जॉब कर रहा था। छोटा बेटा चंदर जो की बीटेक फाइनल ईयर में था, और सबसे छोटी बेटी आदिशा थी, जो बीएससी थर्ड ईयर में थी।
उसी के साथ सुमन भी कॉलेज में थी। दोनों में काफी गहरी दोस्ती थी। दोनों साथ में ही कॉलेज आती – जाती थी। राहुल और सुनील भी उन्हीं की क्लास में थे और इन सब में दोस्ती भी खूब थी। आदिशा राहुल को पसंद करती थी। राहुल बिजनेस फैमिली से बिलॉन्ग करता था। उसके पापा का प्लास्टिक का बिजनेस था। उसके पापा का नाम सेठ शिवदास था। वहीं सुनील एक गरीब परिवार से था और स्कॉलरशिप मिलने की वजह से यहां पर पढ़ पा रहा था। वह राहुल को पढ़ाई में हेल्प कर देता था इसलिए दोनों में काफी बनती थी। और दोनों में दोस्ती भी थी। राहुल मन ही मन सुमन को पसंद करता था। यह बात सुमन को नहीं मालूम था। और इधर सुनील भी सुमन को पसंद करता था जबकि आदिशा सुनील को पसंद करती थी।
सुबह का समय था और सुरेंद्र जी के यहां मेहमान आने वाले थे। कुछ दिन पहले ही उनके ऑफिस में काम करने वाले राकेश जी सुबोध को देखे थे। और सुबोध उनकी बेटी रीमा के लिए सुयोग्य लगा था। यह बात उन्होंने सुरेंद्र जी से कहा और आज राकेश जी अपनी फैमिली के साथ आने वाले थे। सुरेंद्र जी दूर से चिल्लाते हुए आए, “अरे चंदर कहां है? मैंने उससे मिठाइयां लाने के लिए कहा था।”
“हां तो मिठाईयां लेने गया तो है।” गीता देवी ने जवाब दिया। “मुझे कोई भी कमी नहीं चाहिए। गेस्ट रूम को बहुत ही बढ़िया से सजा दीजिएगा। राकेश जी बहुत सफाई पसंद है, उन्हें अपना हर काम सलीके से करना पसंद है। प्लीज गीता जी सब कुछ सही से सेट करा दीजिएगा।” सुरेंद्र जी ने कहा।
“सब ठीक हो जाएगा, आप परेशान ना हो।” गीता देवी ने उन्हें इत्मिनान दिया तो सुरेंद्र जी बाजार चले गए उन्हें कुछ जरूरी काम था।
ठीक बारह बजे सभी मेहमान घर पहुंच गए। राकेश जी और उनकी वाइफ मालती देवी जी और साथ में उनकी छोटी बेटी उर्वशी, बेटा रवि और उनकी बहन रीना देवी थी।
मेहमानों का स्वागत बहुत ही पुरजोशी से किया गया। घर की साफ – सफाई देखकर राकेश जी एकदम मोहित हो गए। मालती देवी को भी सुरेंद्र जी और उनके घर वाले अपनी बेटी के सुयोग्य लगे। मेहमानों को सुरेंद्र जी और उनकी पत्नी गीता जी ने रिसीव किए। मेहमानों को गेस्ट रूम में बैठा दिया गया। दोनों लोग भी उनके साथ बैठ गए, बातें होने लगी।
इसी बीच सुरेंद्र जी ने अपने नौकर बिरजू को बुलाया। बिरजू बहुत पुराना नौकर था। बिरजू तेरह साल का था जब वह यहाँ आया यही आया था। बिरजू सुरेंद्र जी के गांव के रहने वाला था। बिरजू का पिता शराबी था। कभी इधर – कभी उधर से पैसे उधार लेकर शराब पीकर नशे में धुत रहता था। धीरे-धीरे गांव वालों ने उसे पैसे उधार देना बंद कर दिया तो उसके पास थोड़े से जमीन थे, उनको बेचकर शराब पीने लगा। एक दिन शराब न मिलने की वजह से उसने बिरजू को बहुत मारा। बिरजू राकेश जी को जानता था तो शहर आ गया और उनके घर चाकरी करने लगा। अब तो वह यही का हो कर गया था। कोई पढ़ाई उसने किया नहीं था तो कहीं और नौकरी मिलना मुश्किल था। यहां उसे महीने की दो हज़ार रुपये और रहना – खाना मिल जाता था। यही उसके लिए बहुत था। उसने घर जाना छोड़ दिया था, अब यही रहता था। उसको यहां रहते हुए पन्द्रह साल हो गया था। उसे भगवान से अपने लिए कोई शिकायत नहीं था। लेकिन अपने बाप के लिए वह भगवान से बहुत नाराज रहता था।
बिरजू सुरेन्द्र जी के पास आया, सुरेंद्र जी ने बिरजू से कहा, “बिरजू नाश्ते की व्यवस्था करो।”
“जैसा कहिए मलिक, अभी व्यवस्था किए देता हूं।” यह कहकर बिरजू घर के अंदर चला गया।
और सुरेंद्र जी राकेश जी को अपने नौकर बिरजू के बारे में बताने लगे। इधर गीता देवी मालती देवी से उनकी बेटी के बारे में पूछने लगी। घर में काफी चहल – पहल हो गया था। एक शादी सा माहौल हो गया था। तभी राकेश जी बोले, “सुरेंद्र जी सुबोध घर पर हो तो उसे बुलाए जरा।”
“हाँ – हाँ क्यों नहीं अभी बुलवाते हैं। अरे बेटी आदिशा, अपने भाई सुबोध को बुलाओ।” सुरेन्द्र जी ने अपनी बेटी आदिशा को आवाज़ लगाते हुए कहा।
“जी पापा, अभी बुला कर लाती हूँ।” आदिशा ने जवाब देते हुए सुबोध को बुलाने चली गयी।
सुबोध आदिशा को अपने कमरे में देखकर समझ गया कि अब बकरे की खैर नहीं, उसे मिलने जाना ही होगा। आदिशा आते ही बोली, “भईया! पापा आपको गेस्ट रूम में बुला रहे हैं।”
“क्यों? मुझे क्यों बुला रहे हैं?” सुबोध अनजान बनते हुए बोला।
“क्या आपको नहीं पता है? लड़की वाले आपको देखने आये हैं। अब आप ऐसे अनजान मत बनिए। ऐसे आप किसी और को बनाइएगा। मन में तो लड्डू फुट रहे होंगें, सिर्फ रीमा के ख्वाब आ रहे होंगें।” आदिशा ने कहा।
“चलो निकलो कमरे से, थोड़ी देर में आता हूँ।” यह बोलकर सुबोध उसे बाहर भेज दिया।
उसे बाहर भेजकर सोचने लगा, कौन – सी कमीज़ पहनेगा वह। थोड़ी देर सोचने के बाद उसने नीले कलर की कमीज़ निकाला और बाथरूम में चला गया। फिर कुछ देर बाद वह तैयार होकर नीचे आया।
लड़की के घर वाले यानी राकेश जी और उनकी फैमिली को सुबोध से मिलकर बहुत अच्छा लगा। राकेश जी सुबोध से मिलकर पूछने लगे, “और बेटा फ्यूचर में क्या प्लान कर रहे हो? जॉब करना है या फिर कोई बिजनेस?”
“अंकल जब चंदर बीटेक कर लेता है तो सोच रहा हूं कि हम दोनों मिलकर एक सॉफ्टवेयर कंपनी शुरू करेंगे। मैं मार्केटिंग डिपार्टमेंट और चंदर सॉफ्टवेयर डिवीजन देखेगा। यही सोच रहा हूं, तब तक मेरा भी अच्छा एक्सपीरियंस हो जाएगा और चंदर की पढ़ाई भी पूरी हो जाएगी।” सुबोध मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
“यह तो काफी अच्छा प्लान है। तुमने बहुत अच्छा सोचा है, बिजनेस तो काफी सही होता है। थोड़ा मेहनत ज्यादा होता है, टाइम का प्रॉब्लम होता है। एक्स्ट्रा टाइम करना पड़ता है शुरू के दिनों में। लेकिन फिर फ्यूचर संभल जाता है।” राकेश जी कुछ सोच भरे मुद्रा में कहे।
दोनों फैमिली ने मिलकर एक साथ लंच किया। बिरजू दौड़ – दौड़ कर खाना सर्व करता रहा। लंच बहुत ही अच्छे मूड में सभी ने किया। खाना और व्यवस्था देखकर राकेश जी और उनकी पत्नी मालती देवी को बहुत अच्छा लगा। मंत्र मुक्त हो गया। दोनों लोग मन में विचार किये कि वह सुबोध से ही अपनी बेटी रीमा का विवाह करेंगे। फिर मिठाइयों और चाय का दौर चला। सभी का मन मोह लिया, सुरेंद्र जी और गीता देवी का व्यवहार और व्यवस्था ने। फिर राकेश जी ने आने वाले संडे को सुरेंद्र जी को सपरिवार अपने घर इनवाइट किये। सुरेंद्र जी और गीता देवी ने उनके इनविटेशन को सहृदय स्वीकार किये। राकेश जी खुशी मन से विदा हुए। उनके जाने के बाद गीता देवी बोली, “फैमिली तो बहुत अच्छी जान पड़ती है, अब लड़की भी अच्छी हो तो बात बन जाए। लड़के की शादी सही उम्र में हो जाएगा तो बहुत अच्छा हो जाएगा। राकेश जी ने भी उनकी इस बात के लिए हामी भरी। थोड़ी देर बाद गीता देवी किचन समेटने चली गई। किचन काफी बिखरा हुआ था। उन्होंने बिरजू को काम पर लगाया और आदिशा को भी आवाज दिया।
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