क्या आपने कभी इस पर विचार किया है कि हम इंसान अपने स्वार्थ या लाभ के प्रति इतने संवेदनशील क्यों हैं? यह सतही दिखने वाला सवाल वास्तव में गहरे सागर जैसा है, जिसकी गहराई को समझना आसान नहीं। मानव प्रवृत्ति और समाज का यह एक अनकहा सच है कि हम हमेशा अपने हितों को सबसे पहले रखते हैं। आज, हम इस दिलचस्प विषय पर विचार करेंगे और जानेंगे कि आखिर ऐसा क्यों होता है।
दार्शनिकता की ओर एक नजर (A glance at philosophy.)
इंसान की प्रकृति को समझने के लिए हमें थोड़ा दार्शनिक बनना पड़ेगा। हमारे पूर्वजों ने जीवन की जटिलताओं को समझने का प्रयास किया है। मनोवैज्ञानिक और मानव स्वभाव के गहन अध्येता, फ्रेडरिक पर्किन्स, ने अपने शोध में यह बताया है कि ‘मनुष्य स्वभाव से स्वार्थी होता है।’ हालांकि, यह स्वार्थ सिर्फ नकारात्मक नहीं है। यह स्वार्थ हमें अपने अस्तित्व को बनाए रखने की प्रेरणा देता है। उदाहरण के लिए, अपने लाभ की खोज के दौरान हम न केवल भौतिक संसाधनों के बारे में सोचते हैं बल्कि मानसिक और भावनात्मक सुरक्षा को भी प्राथमिकता देते हैं। यह प्रक्रिया मनुष्य को बेहतर जीवन जीने और जीवन की अनिश्चितताओं से जूझने में सहायता करती है।
जीव-विज्ञान की भूमिका (The role of biology)
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो इंसान के फायदे को देखने की प्रवृत्ति हमारे अस्तित्व के लिए जरूरी है। प्राचीन काल में, जब इंसान शिकारी-संग्राहक (शिकार करने और भोजन इकट्ठा करने वाला) था, तो उसे अपने लाभ की देखभाल करनी होती थी ताकि वह भोजन और संसाधन प्राप्त कर सके। यह एक संघर्ष था, और इस संघर्ष में जो मजबूत और चतुर थे, वे ही जीवित रह गए। इसी कारण, हमारे डीएनए में एक निश्चित मात्रा में स्वार्थी प्रवृत्तियों का समावेश हुआ है। आज के आधुनिक जीवन में, यह प्रवृत्ति विभिन्न रूपों में दिखाई देती है, जैसे प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में खुद को आगे बढ़ाने की चाहत, अपने हितों की प्राथमिकता देना, और संसाधनों को अधिकतम करने की कोशिश करना।
मनोविज्ञान की गहराई में (In the depths of psychology)
मनोविज्ञान के अनुसार, इंसान का स्वार्थ उसकी जीवित रहने की प्रवृत्ति और सामाजिक गतिशीलता से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। जीवित रहने की प्रवृत्ति इंसान को यह सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करती है कि उसके पास आवश्यक संसाधन और सुरक्षा हो, जबकि सामाजिक गतिशीलता उसे अपने समाज में जगह बनाने और सहयोग पैदा करने के लिए प्रेरित करती है। इस कारण से, मनुष्य अपने लाभ और अपने आस-पास के लोगों के साथ संबंधों के संतुलन को समझकर ही संबंध बनाता है। रिश्ते तब अधिक मजबूत और सकारात्मक होते हैं, जब दोनों पक्षों को एक-दूसरे से भावनात्मक, सामाजिक या भौतिक लाभ मिलता है, और साथ ही उनमें परस्पर विश्वास और सहानुभूति होती है। ये सकारात्मक पहलू रिश्तों को न केवल लंबे समय तक बनाए रखने में मदद करते हैं, बल्कि समाज में सामंजस्य भी बनाते हैं।
स्वार्थ और सहयोग: एक संतुलन (Selfishness and cooperation: a balance)
यह सही है कि इंसान स्वार्थी है, लेकिन यह भी सच है कि उसका स्वार्थ कुछ हद तक उसे सहयोग की ओर भी प्रेरित करता है। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, मनुष्य का सहयोगी प्रवृत्ति सामाजिक विकास का एक प्रमुख आधार है। अध्ययनों से पता चलता है कि मानव समाजों में समूह के अंदर सहयोग और आपसी समर्थन की भावना ही उनके विकास को संभव बनाती है। एक सकारात्मक दृष्टिकोण में, जब हम अपने फायदे को देखते हैं, तो हम दूसरों के फायदे का भी ख्याल रखते हैं। उदाहरण के लिए, अगर एक टीम में सभी सदस्य मिलकर काम करते हैं, तो उनके व्यक्तिगत लक्ष्य पूरे होने के साथ-साथ टीम का लक्ष्य भी सफल होगा। ऐसा तभी संभव है जब प्रत्येक सदस्य समय पर अपने कार्यों को पूरा करे और दूसरों को भी समर्थन दे। टीम में यह समझ होनी चाहिए कि एक सदस्य की कमजोरी पूरे समूह की सफलता को प्रभावित कर सकती है। इस तरह, स्वार्थ और सहयोग का एक विशेष संतुलन स्थापित होता है, जहां व्यक्तिगत और समूह के लाभ एक-दूसरे से पूरी तरह जुड़े होते हैं। यह संतुलन समाज और संगठन दोनों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
समाज में फायदा उठाना (Exploiting in society)
हमारे समाज में यह देखा गया है कि लोग अक्सर अपने फायदे के लिए दूसरों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। अक्सर हमें यह सुनने को मिलता है कि ‘हमेशा अपने सच्चे दोस्त की तलाश करो,’ लेकिन सच्चाई यह है कि दोस्ती का भी एक हल्का सा व्यापारिक पहलू होता है। अगर आपको किसी दोस्त से सहयोग नहीं मिल रहा है, तो आप शायद उस रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित नहीं होंगे। इस प्रकार, इंसान का अपने फायदे की तलाश करना अक्सर उसके सामाजिक संबंधों को भी प्रभावित करता है।
आत्मसंवर्धन का महत्व (The importance of self-enhancement.)
जो लोग अपने फायदे को देखते हैं, वे अक्सर आत्म-प्रगति में भी आगे रहते हैं। आज के प्रतिस्पर्धी युग में, अगर हम अपने फायदे को नजरअंदाज करते हैं, तो हम पीछे रह जाएंगे। अपने लाभ को पहचानना और उसके लिए प्रयास करना हमारी व्यक्तिगत विकास की कुंजी है। जब आप अपने फायदे पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो आप अपनी सीमाओं को पहचानते हैं और उन्हें पार करने का प्रयास करते हैं। यही कारण है कि सफलता अक्सर उन लोगों के पास जाती है जो अपने फायदे को समझते हैं और उसे प्राप्त करने की दिशा में काम करते हैं।
निष्कर्ष
आखिरकार, यह जरूरी नहीं कि अपना फायदा देखना हमेशा नकारात्मक हो। हमारे फायदे को समझना और उसका सम्मान करना हमें बेहतर इंसान बनाने की ओर अग्रसर कर सकता है। यह एक स्वस्थ स्वार्थ है, जो हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। जब हम अपने फायदे को समझते हैं और उसे सकारात्मक तरीके से इस्तेमाल करते हैं, तो हम न केवल अपनी जिंदगी में अपार सफलता प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि दूसरों की जिंदगी में भी सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
इस प्रकार, इंसान का अपने फायदे को देखना न केवल सच्चाई है, बल्कि यह अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसलिए, अगली बार जब आप किसी स्थिति में अपने फायदे को देखें, तो याद रखें कि यह महज स्वार्थ नहीं, बल्कि जीवन के एक अनिवार्य पहलू का हिस्सा है। अपने फायदे को पहचानें, अपनी सीमाओं का ज्ञान रखें और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दृढ़ रहें!