Ek Mohabbat Aisi bhi
यह कहानी सिर्फ कहानी नहीं है बल्कि किसी के जीवन की आपबीती है। ये मेरे एक पहचान वाले के साथ घटी हुई घटना पर आधारित है। मैंने इस कहानी को बिना किसी आस – पास के चीजों को दर्शायें या कुछ अधिक जोड़े सीधे कहानी को बताया हूँ जो उस व्यक्ति के साथ हुआ। यह एक बहुत ही सरल – सी प्रेम कहानी है, जिसमें एक गरीब बिना माँ – बाप के लड़के को अपने मालिक की लड़की से प्यार हो जाता है। ये एक छोटी सी कहानी है पर ये आपके दिल पर अपनी छाप जरूर छोड़ देगी।
यह कहानी उन सभी लोगों को समर्पित है जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी में किसी न किसी से प्यार किया है।
Ek Mohabbat Aisi bhi
इंद्रा घर के अन्दर आई और आते ही मम्मी के पास गयी और बोली, “मम्मी आप मुझसे नाराज़ हैं क्या?”
विशाखा देवी ने दोनों हाथों में रखें अपने चेहरे को उठाकर आवाज़ की तरफ चौक कर देखीं। बेहद ख़ूबसूरत फ्रॉक पहने इंद्रा दरवाजे के पास खड़ी थी, खिड़की की तरफ से आती हुई हवा उसके काले और ब्राउन बालों को ऊपर की तरफ उड़ा रहे थे। इंद्रा की बड़ी – बड़ी आँखों में आंसू झिलमिला रहे थे। विशाखा देवी एकटक देखे जा रही थी।
तभी इंद्रा बोली, “मम्मी प्लीज! मुझसे नाराज़ न होईये क्योंकि मेरा कोई कसूर नहीं है मैं बेकसूर हूँ।”
उसका यह अंदाज़ देख कर विशाखा के दिल में एक दर्द सा उठा। वह उसे बहुत डांटना चाहती थीं लेकिन एक भी शब्द उनके मुंह से निकल न सका। उनको ऐसा लग रहा था जैसे अचानक उनके सोचने – समझने की क्षमता उनसे अलग हो गयी हो।
इंद्रा उनकी चुप्पी को देख कर बोली, “मेरा यकीन कीजिये मम्मी मेरा कोई कसूर नहीं है। आप मुझे गलत समझ रहीं हैं लेकिन मैं गलत नहीं हूँ।” इंद्रा की आँखों से झरने की तरह आंसू बह रहे थे।
वह जल्दी से अपना कदम विशाखा देवी की तरफ बढाई लेकिन विशाखा देवी गुस्से से अपनी उंगली इंद्रा की तरफ उठाते हुए बोलीं, “मेरे करीब मत आना इंद्रा इंद्रा इंद्रा …..।”
इंद्रा के कदम जहाँ थे वहीँ एकदम से रुक गए। वह अपनी झुकी नज़रों से उनकी तरफ देखने लगी। विशाखा के दिल में तूफान सा उठा, वह पूरी ताक़त से वहां से उठी और बाहर की तरफ जाने के लिए कदम उठायें तब तक जल्दी से इंद्रा ने झुक कर उनके पैर पकड़ ली और बोली, “प्लीज मम्मी मुझे यूँ अकेला छोड़कर मत जाईये मैं बिल्कुल बेकसूर हूँ।”
“अगर तुम बेकसूर हो तो कहाँ थी अब तक?” विशाखा ने पूछा।
“वो मम्मी आपको कैसे बताऊँ, काश मैं आपको समझा सकती लेकिन मुझे खुद पता नहीं, मैं खुद नहीं जानती कि मैं कहाँ थी।” इंद्र ने जवाब दिया।
“इंद्रा जब तुम नहीं जानती तो यहाँ से चली जाओ, मैं अब तुम्हारी शक्ल तक नहीं देखना चाहती।” चिल्ला – चिल्ला कर विशाखा देवी कहने लगी।
किसी चीख के साथ उनकी आँखें खुल गयी। उनका पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था। हे भगवान क्या यह एक सपना था? उन्होंने ठंडी साँस भरकर अपने दाहिने तरफ देखीं, देव जी बेड से टेक लगाये उनको ही देख रहे थे। उन्होंने एक कड़क नज़र विशाखा देवी के तरफ डाली। विशाखा देवी के पुरे शरीर में सनसनी सी दौड़ गयी। यह वही उनके पति हैं जो उनकी जरा सी परेशानी से बेचैन हो जाते थे लेकिन इस हादसे ने सब कुछ बदल कर रख दिया था। देव जी के चेहरे पर ऐसी उदासी थी की वह बर्दाश्त न कर सकी, बिस्तर से उठीं और चप्पल पहन कर बाहर निकल आयीं और बरांडे में आकर एक कुर्सी पर बैठ गयीं। अभी तक उनके कानों में इंद्रा की सिसकियाँ गूंज रही थी, जो उनके दिल पर आंसू बनकर गिर रही थी। कितना ही समय बीत गया किन्तु उनकी सिसकियाँ नहीं थमी। काफी देर बाद कुछ उन्होंने अपना सिर ऊपर उठायीं, बरांडे में अँधेरा होने की वजह से ध्यान न दे सकी साथ वाले कुर्सी पर जीशान बैठा था। अपने घुटनों में सिर रखे वह भी रो रहा था। विशाखा देवी धीरे से अपना हाथ उसके सिर पर रख दीं और कहा, “मत रो जीशान उसे भूल जा, उन लोगों को याद करने से क्या फायदा जिनको हमारे जज़्बात की परवाह नहीं उन्हें याद करके आंसू बहाने से क्या फायदा।”
“नहीं मालकिन इंद्रा बुरी नहीं थी।” जीशान ने कहा।
“उसे बुरा ना कहूँ तो फिर क्या कहूँ बेटा। तुम मेरे नौकर ना होकर अपितु मेरे बेटे जैसा है। क्यों चली गयी वह मुझे अकेला छोड़कर?”
इंद्रा कहीं नहीं गयी वह इसी घर में हम लोगों के साथ ही है, बस दिखाई नहीं दे रही है। देखिये यह उसका दुपट्टा है। इससे उसकी खुशबू आ रही है।
विशाखा देवी ने वह दुपट्टा अपने हाथों में लेकर उसकी खुशबू महसूस की और फिर उसे सीने से लगाकर फूट – फूट कर रोने लगीं।
मम्मी प्लीज मत रोईये, अपने कमरे में चलिए। जीशान भाई आप अपने कमरे में जाईये और आराम कीजिये। अमन उसी समय वहां आ गया था।
विशाखा देवी को कन्धों के सहारे उनके कमरे में लाकर बेड पर बैठा दिया और खुद कुर्सी पर बैठ गया। फिर कहने लगा, “मम्मी प्लीज अपने आप को संभालिये, इस तरह रहेंगी तो कैसे काम चलेगा। पापा का क्या होगा। कम से कम उनके बारे में सोचिये, उनकी हालत देख रही हैं, बिलकुल शांत हो गए हैं। न कुछ बोल रहे हैं और मुस्कुराना तो जैसे भूल गए हैं। आप दोनों को एक – दूसरे को दिलासा देना चाहिए क्योंकि हम सभी को मिलकर इस दुःख का सामना करना है। और इस कहर से बाहर आना है, साथ ही हमें इंद्रा को भी भूलना है।” अमन अपने आंसुओं को रोक न सका तो धीरे – धीरे बोलते – बोलते कमरे से बाहर निकल गया।
अमन के जाने के बाद जीशान अपने कमरे में आकर बेड पर बैठ गया और इंद्रा को याद करके रोने लगा। वह सोच रहा था की इंद्रा क्यों नहीं मानी? क्यों उसको अकेला छोड़कर जाने की बात की? जबकि मैं उसका आदी हो गया था। उससे दूर रह कर मैं कैसे जी सकता था। इसीलिए हमेशा के लिए उसे अपने पास रख लिया। घर के सभी लोग उदास हो कर इंद्रा के वापस आने का इंतज़ार कर रहे थे। और एक – दूसरे से कह रहे थे कोई बात नहीं अगर वह कहीं चली गयी है तो कोई बात नहीं कम से कम इतने दिन में उसे वापस आ जाना चाहिए या फिर कोई अपनी जानकारी भेज देती की वह सुरक्षित है।
अगर आ जाती तो हम लोग क्या उसे भगा देते? नहीं। हम उसे फिर पहले के जैसे ही अपने सीने से लगा कर रखते। सबसे ज्यादा दुःख विशाखा देवी को हो रहा था। वह सोच रहीं थी की काश उस रात वह उसे घर अकेला छोड़कर नहीं जाती तो आज ऐसा दिन नहीं देखना पड़ता। लेकिन अब सोचने से क्या फायदा। वक़्त तो चला गया। घर से न रुपये और ना ही कोई जेवर लेकर गयी है। दुःख इस बात का है कि न जाने वह किस हाल में होगी। यही बात वह बार – बार कह कर जोर – जोर से चिल्ला – चिल्ला कर रोने लग रही थी। उन को चुप कराने के लिए शीला मौसी का बेटा सुनील पास में खड़ा होकर बार – बार कह रहा था, “मामी आप अपने आप पर काबू रखिये। वह तो सिर्फ आपकी बेटी थी लेकिन मेरी तो वह जान थी। मैं कैसे जी रहा हूँ यह मैं ही जानता हूँ।”
“इंद्रा इंद्रा इंद्रा …!” कह कर सुनील चक्कर खाकर ज़मीन पर गिर गया। वह बेहोशी में सिर्फ इंद्रा को पुकार रहा था। लेकिन इंद्रा कहाँ थी कि उसकी हालत देखती। वहां मौजूद लोग उसकी हालत देख कर रो रहे थे। हाय! इंद्रा कम से कम एक बार तो कही रहती की सुनील अब आपको अकेले ही रहना होगा। कैसे गुजरेगी यह लम्बी ज़िन्दगी मुझसे। हे भगवान मुझे मेरे इंद्रा के पास बुला ले। मैं उसके बगैर जी कर क्या करूंगा?
सभी लोग इंद्रा के लिए परेशां थे। उसे सबसे ज्यादा लगाव इस कम दिमाग लड़के जीशान से था। वह उसका बहुत ख्याल रखती थी। उसको खाना खिलाती, कपड़े धुलती, उसके प्रोजेक्ट में उसकी मदद करती थी। उसके साथ हमेशा रहती थी। जीशान उस घर में नौकर की तरह नहीं बल्कि एक सदस्य की तरह रहता था। वह घर के सारे काम करने के बाद स्कूल जाता था। वह बचपन से थोड़ा कम दिमाग का लड़का था। लेकिन मेहनती बहुत था। इसीलिए पूरा जाँच – परख करने के बाद विशाखा देवी उसे अपने घर पर नौकर के रूप में लायीं थीं। उस तूफान वाली रात सिर्फ जीशान और इंद्रा ही घर पर थे। इंद्रा के गायब होने के बाद से वह बीमार पड़ गया था। और हर समय इंद्रा का नाम लेता रहता था।
यह बात इंद्रा के घर से गायब होने से पहले की है। जब इंद्रा और जीशान घर के ओसारे में बैठकर बारिस का मज़ा लेते हुए चाय और पकोड़े खा रहे थे की तभी पता नहीं कहाँ से सुनील आ गया और इंद्रा से बोला, “यार इंद्रा क्या मुझे कुछ नहीं खिलाओगी?”
इंद्रा बोली, “क्यों नहीं, आप यहीं बैठो, मैं अभी चाय बनाकर लती हूँ।” इंद्रा के जाने के बाद जीशान सुनील से बोला, “क्या सच में तुम इंद्रा को यहाँ से लेकर चले जाओगे?”
सुनील हंसकर बोला, “हाँ! मेरी माँ ने इंद्रा से मेरी शादी के लिए उसके मम्मी – पापा से उसे मांग ली है। इस लिए एक दिन मैं उससे शादी करके उसे यहाँ से ले जाऊँगा और तुम बैठ कर देखते रहना।” सुनील उसे चिढ़ाने के लिए और भी पता नहीं क्या – क्या कह रहा था लेकिन जीशान का ध्यान तो सिर्फ इस बात पर जाकर अटक गया था कि इंद्रा उससे दूर हो जाएगी। वह वहां से उठा और एक कोने में जाकर बैठ गया। तभी इंद्रा वहां चाय लेकर आ गयी। जीशान को वहां पर न देखकर सुनील से पूछी, “अरे यार जीशान कहाँ गया? आप जानते हो की उसका मेरे सिवा कोई नहीं है। यहाँ तक की उसके मम्मी – पापा भी नहीं हैं।” कहते – कहते उसके आँखों में आंसू आ गए।
“अरे यार! तुम क्यों रोने लगी? मैं तो उससे यूँ ही मजाक कर रहा था। चलो मैं तुम्हारे सामने उससे माफ़ी मांग लेता हूँ।” सुनील ने कहा।
“माफ़ी की बात नहीं है। तुम जानते हो की वह कितना इमोशनल टाइप का बन्दा है। इसलिए उस से डर लगता है। और आपको तो पता है सुनील, आप कितने सुन्दर और ख़ूबसूरत हैं। आपको पाने के लिए लड़कियों की लाइन लग जाएगी लेकिन जीशान को देखो उसको कौन अपनाएगी।” इंद्रा ने समझाया।
सुनील बोला, “इंद्रा, मैं मानता हूँ की मुझे पाने के लिए लड़कियों की लाइन लग जाएगी लेकिन इंद्रा तो नहीं होगी न। इसलिए कहता हूँ मुझसे कोई सबकुछ लेले लेकिन मेरी इंद्रा को मेरी झोली में डाल दे। मैं तुम्हारे बगैर जी नहीं पाऊँगा। इंद्रा मेरी जान है। सुनील मतलब इंद्रा, इंद्रा मतलब सुनील।”
यह सारी बातें वह मंदबुद्धि जीशान वहां कोने में बैठकर सुन रहा था। उसे बहुत दुःख हो रहा था। जीशान अब अपने मन ही मन में सोच रहा था की इंद्रा अब उससे दूर हो जाएगी। इंद्रा दूर हो जाएगी तो मेरा ख्याल कौन रखेगा और मुझसे बातें कौन करेगा। वह मन ही मन सोचा अगर इंद्रा उसकी नहीं तो फिर किसी की नहीं। यही सोचकर अब वह समय का इंतज़ार करने लगा।
इधर पुरे घर में इंद्रा की शादी तय हो जाने के बाद ख़ुशी का माहौल था। हर समय गाना बजाना हो रहा था। लेकिन यह सब इंद्रा को अच्छा नहीं लग रहा था। एक तरफ सुनील से शादी की बात खुश कर रहा था तो वहीँ दूसरी तरफ जीशान जैसे दोस्त से दूर होने का ख्याल ही उसे तकलीफ दे रहा था। घर के सभी लोग शादी में काम आने वाली चीजों की खरीदारी में व्यस्त हो गए थे। कभी यह खरीदना है तो कभी यह बाकी लग गया है। इसी में सब कोई परेशान था। उधर जीशान परेशान था की उसकी इंद्रा अब उससे दूर होने जा रही है। जब यह ख्याल उसके दिमाग में आ रहा था तो वह कांप जाता था।
वह सोचा, चाहे कुछ भी हो जाये वह इंद्रा को अपने से दूर नहीं होने देगा। उसने एक तरकीब निकाला की कल जब सभी लोग घर से बाज़ार के लिए जायेंगें और जब वापस आयेंगें उसके बाद सभी लोग सुनील के बर्थडे पार्टी में जायेंगें लेकिन इंद्रा नहीं जाएगी और वह घर पर अकेली रहेगी, ठीक उसी समय मुझे कुछ करना होगा।
काफी समय पहले जीशान ने एक फिल्म में देखा था की चूहे को मरने वाले पॉइज़्न् को खाने के बाद इन्सान धीरे – धीरे मर जाता है। वह यह जानता था की उसे यह पॉइज़्न् कहाँ मिलेगा। वह पूरी तरह से अपने दिमाग में सोच लिया था की उसे क्या करना है। अच्छे से प्लान करने के बाद वह सोने चला गया, किन्तु उस रात नींद उसके आँखों से कोसों दूर चला गया था। वह बेचैनी से सुबह होने का इंतज़ार कर रहा था।
सुबह होते ही वह सबसे पहले अपने दोस्त के पास गया जो पास के ही एक घर में माली का काम करता था। उसका नाम रवि था। जीशान ने उससे कहा, “दोस्त मुझे तुम्हारी मदद की जरुरत है। मेरी छोटी मालकिन को आम के पौधे बड़े प्यारे लगते हैं और मैं चाहता हूँ एक आम का पौधा लगाना। तुम तो जानते ही हो की मुझे पौधे लगाने की विधि नहीं आती है? क्या तुम मुझे पौधे लगाने में मेरी मदद करोगें?”
“ठीक है क्यों नहीं। चलो हम लोग बाज़ार से पौधे लाते हैं।” रवि ने कहा।
दोनों दोस्त बाज़ार की तरफ चल दिए। बाज़ार से उन्होंने आम के पौधे ख़रीदे और घर की तरफ आने लगे। कुछ देर बाद जीशान बोला, “यार यह पौधे लेकर तुम अपने बगीचे में चलो, मैं कुछ खाने को लेकर आता हूँ।” वह मान गया। इधर जीशान जहर लेने के लिए दुकान पर गया और तीन पैकेट ज़हर वाला खरीद लिया और लेकर घर पहुंचा तो शाम हो चुका था।
सभी लोग बर्थडे पार्टी में चले गए थे। वह धीरे – धीरे चलकर इंद्रा के कमरे के पास आया तो देखा इंद्रा टीवी देखने में व्यस्त थी। वह चुपचाप किचन में चला गया और कॉफ़ी बनाने लगा। इंद्रा को स्ट्रोंग कॉफ़ी बहुत पसंद था। वह कॉफ़ी को मग में निकाल कर उसमें ज़हर मिला दिया। फिर वहां से लेकर इंद्रा के पास गया। इंद्रा ने कॉफ़ी देख कर कहा, “वाह! क्या बात है। मुझे कॉफ़ी पीने का मूड हो रहा था। थैंक्स।” इतना कहकर उसने कॉफ़ी का मग ले लिया और पीने लगी।
जीशान फिर दौड़ कर घर से बाहर आया और अपने माली दोस्त रवि के पास गया।
रवि ने पूछा, “क्या हुआ जीशान इतना टाइम लगा दिया आने में।”
जीशान ने जवाब दिया, “दोस्त घर पर थोड़ा काम बढ़ गया था। इसीलिए लेट हो गया। चलो अब जल्दी से पौधा लगा देते हैं।”
और फिर दोनों बागीचे में कुदाल और पौधा लेकर चले गए। सूरज अब ढल चूका था और चारो तरफ अँधेरा छा रहा था। बागीचे में पेड़ो के वजह से ज्यादा अँधेरा हो रहा था। जीशान मोबाइल से टॉर्च की रौशनी ऑन करके एक पेड़ के टहनी पर रख दिया। अब दोनों मिलकर गढ्ढे की खुदाई करने लगे।
थोड़ी देर बाद रवि बोला, “अरे यार इतना लम्बा – चौड़ा गड्ढा क्या होगा।”
“कुछ नहीं यार बस पेड़ लगा देंगें। अँधेरा बढ़ता जा रहा है, ऐसा करो अब तुम जाओ, मैं पानी डालने के बाद पौधा लगा दूंगा।” जीशान ने कहा।
“ठीक है तो फिर मैं चलता हूँ।” इतना कह कर रवि वहां से चला गया। उसके जाने के बाद जीशान काफी देर तक गड्ढे को गहरा करता रहा। फिर कुछ देर बाद जीशान इंद्रा के कमरे में आया तो देखा की इंद्रा मर चुकी है। बाहर पूरी तरह से अंधकार ने अपना जाल फैला दिया था। अपना हाथ भी नहीं दिखाई दे रहा था। वह उसे वहां से उठाया और घसीटते हुए उस गड्ढे के पास लाया, फिर उसने इंद्रा के शरीर को कई टुकड़ों में काट दिया और उन टुकड़ों को गड्ढे में डाल कर थोडा मिट्टी रख दिया और इसके बाद उसने आम का पौधा लगा कर पूरी तरह से मिटटी से भर दिया। और फिर थोड़ी देर बाद जीशान वहीँ कब्र के पास बैठकर बुदबुदाने लगा, “अब मेरी इंद्रा मुझे छोड़कर कभी नहीं जाएगी। वह अब हमेशा मेरे पास रहेगी।”
उस रात इतना बारिश हुआ कि सबकुछ बराबर हो गया। कहीं कोई निशान बाकी नहीं था।